अटल जी के नेतृत्व को आडवाणी जी ने तब भी स्वीकार किया, जब अयोध्या आंदोलन से निर्मित छवि के जरिए वे पार्टी के भीतर अटल जी से आगे नजर आते थे. 1995 के पार्टी के मुंबई अधिवेशन में आडवाणी जी ने अगले प्रधानमंत्री के तौर पर अटल जी के नाम की घोषणा की थी. उनकी इस घोषणा की संघ परिवार और आडवाणी के निकटस्थ लोगों ने काफी आलोचना की थी.
लालकृष्ण आडवाणी का हिंदी भाषा से परिचय, बोलना-लिखना- पढ़ना 20 साल की उम्र पूरी करने पर विभाजन के बाद सिंध से भारत आने पर शुरू हो सका था. हिंदी से उनकी अनभिज्ञता की हालत यह थी कि अपनी दादी को एक चिट्ठी लिखते हुए देख उन्होंने सवाल किया था कि आप हिंदी में क्यों लिख रही हैं? दादी ने बताया कि यह हिंदी नहीं गुरुमुखी है. कराची के इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ाई के दौरान छात्रों के पास एक अन्य भाषा लेने का विकल्प था. आडवाणी ने लैटिन को चुना था. उसमें उन्हें अच्छे अंक मिले. लेकिन उन्हें हमेशा संस्कृत न सीखने का अफसोस रहा है. जिस कैथोलिक स्कूल में वे पढ़ते थे, वहां संस्कृत पढ़ाई ही नहीं जाती थी.
आडवाणी -अटल की जोड़ी साथ फिल्में देखने के लिए भी चर्चित रही है
दिल्ली काउंसिल के चुनाव में उन्हें पार्टी की जीत का भरोसा था. वोटों की गिनती में निराशा हाथ लगी. आडवाणी और अटल जी मन बदलने के लिए फिल्म देखने चले गए थे. फिल्म का नाम था, “फिर सुबह होगी.” आडवाणी को फिल्में देखने का शौक अपने छोटे सुंदर मामा की मदद से हुआ. उनके हिंदी सीखने- बोलने में भी ये हिंदी फिल्में काफी मददगार बनीं. हालांकि बचपन में डरावनी फिल्म “फ्रेंकेस्टाइन” देखने के अगले 14 वर्षों (1942 -56) तक उन्होंने एक भी फिल्म नहीं देखी. पर सुंदर मामा एक बार फिर उन्हें सिनेमा ले गए. यह भी एक डरावनी फिल्म “द हाउस ऑफ वेक्स” थी.
1952 में पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी से राजस्थान में भेंट के समय आडवाणी कोटा में संघ के प्रचारक थे. इस मुलाकात की अटल और भैरो सिंह शेखावत के साथ की तस्वीर को आडवाणी ने अपनी आत्मकथा के शुरुआती पन्नों में जगह दी है. साथ में इन तीनों की 2003 की में एक तस्वीर है. आधी सदी के इस साथ की इबारत पहली मुलाकात में ही लिख गई थी. 1957 में दीन दयाल उपाध्याय ने आडवाणी को दिल्ली आने और अटल जी को संसदीय कार्यों को सहयोग करने के लिए कहा. आडवाणी लिखते हैं कि यदि मुझे ऐसे किसी एक व्यक्ति का नाम लेना हो, जो प्रारंभ से आज तक मेरे राजनीतिक जीवन का हिस्सा रहा हो और जिनका नेतृत्व मैंने निसंकोच भाव से स्वीकार किया हो तो वह नाम अटल बिहारी वाजपेयी का है.
आडवाणी के अनुसार संघ और सहयोगियों के बीच से ये शिकायतें आती रहीं कि मुझमें अटल जी के फैसलों के प्रति असहमति व्यक्त करने का साहस की कमी है. ऐसी शिकायतों को आडवाणी ने हमेशा दरकिनार किया. उनके अनुसार मैंने हमेशा अटल जी को अपना वरिष्ठ और नेता स्वीकार किया. मैं अपने साथियों को बताता था कि मुखिया के बिना कोई परिवार टिक नहीं सकता. दीनदयाल जी के बाद अटल जी परिवार के मुखिया हैं.