बंगाल में भीषण चक्रवात और अकाल अंग्रेंजी हूकूमत के काले इतिहास में दर्ज है, जिसमें लाखों लोगों की मौत हुई। ठीक इसी समय भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई थी। आइए जानते हैं मौसम के भविष्यवाणी का इतिहास और वर्तमान।
कुछ दिनों पूर्व फ्रांस के डिजीओंस से एक मजेदार खबर आई। वहां के एक नागरिक ने मौसम विभाग से पूछा कि मै अपनी शादी की पार्टी दोस्तों को देना चाहता हूं, इस दिन मौसम साफ रहेगा या नहीं ? मौसम विभाग ने बता दिया कि उस डेट में मौसम बिलकुल अच्छा रहेगा। लेकिन ऐनवक्त पर बर्फबारी हो गई और शादी के उत्सव में व्यवधान पड़ गया। जिसके बाद उस व्यक्ति ने मौसम विभाग पर उपभोक्ता फोरम में मुकदमा कर दिया कि आपके कारण मेरा इतना नुकसान हुआ जिसकी भरपाई करें। यूरोपियन तकनीक, उनके उपग्रह मौसम के विश्लेषण और पूर्वानुमान के लिए सटीक हैं, फिर भी चूक हो जाती है। भारत में मौसम के भविष्यणावी या पूर्वानुमान की शुरुआत की कहानी अत्यंत दुखद है। यह उस दौर में शुरू हुआ जब फसलों पर लगान और मालगुजारी की अवमानवीय वसूली से देश कराह रहा था।
कोलकाता का चक्रवात और बंगाल का अकाल
कोलकाता में 1864 में भीषण चक्रवात आया जिसमें गांव के गांव उजड़ गए, बिखर गए। इसके ठीक दो साल बाद 1866 और 1871 में पड़ा अकाल जिसमें लाखों लोग भूख से मर गए। इसके चार साल बाद भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की गई थी, जिससे मौसम का सटीक अनुमान किया जा सके। किसानों को यह बताना कि बरसात कब होगी, जिससे फिर से अकाल जैसे हालात न बनने पाए। यही मुख्य कार्य भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का था।
सबसे पहले हुआ कम्यूटर का प्रयोग
बंगाल के अकाल के बाद भारतीय मौमस विज्ञान विभाग की स्थापना की गई और एचएफ बलैनफोर्ड को पहला संवाददाता नियुक्त किया गया। पहले महानिदेशक के रुप में 1889 में जान एलियट की नियुक्ति की गई। समय के साथ आईएमडी अर्थात भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने खुद को अपडेट करता रहा और मौसम के पूर्वानुमान सेवाओं, संचार और विभाग के क्षेत्रीय कार्यालयों का लगातार विस्तार करने के साथ ही आधारभूत संरचनाओं को भी विकसित किया गया। भारत में सबसे पहले कम्यूटर का इस्तेमाल मौसम विज्ञान विभाग ने ही किया था। अपनी स्थापना के करीब डेढ़ सौ वर्षो बाद तक विभाग प्रतिदिन मौसम की जानकारी देता आ रहा है। अब हमारे पास उपग्रह प्रणाली है और उपग्रह से प्राप्त सूचनाओं और उसके विश्लेषण के तमाम आधुनिक साधन मौजूद हैं।
थर्मामीटर और बैरोमीटर है आधुनिक यंत्रों के पूर्वज
भारत की आधी आबादी आज भी खेती किसानी पर निर्भर है। हमारे देश में खेती की भूमि 56 प्रतिशत बरसात के पानी पर निर्भर हैं जबकि 80 प्रतिशत किसान बरसात के पानी के लिए टकटकी लगाए रहते हैं। भारत में मौसम के पूर्वानुमान की शुरुआत तो 3,000 ईसवीं पूर्व से मानी जाती हैं, जिसमें देशज प्रक्रियाएं रही है। इसे लेकर तमाम कहावतें ओर मुहावरे प्रचलित रहे हैं। लेकिन वैज्ञानिक तौर पर इसकी शुरुआत 17 वीं शताब्दी के बाद से माना जाता है जब थर्मामीटर और बैरोमीटर की खोज हुई। इसे लेकर यूरोपियन वैज्ञानिक एडमंड हैली ने 1886 में एक किताब भी लिखी थी।
एडमंड हैली की थ्योरी
यह सिद्धांत भारत के आसपास हिंद महासागर और एशिया की भूमि के गर्म हवाओं पर आधारित है। भूगोल में गर्म हवाओं की दिशा और उसके ऊपर उठने की शुरुआत हैली की थियरी से ही आया। इसके बाद 19 वीं शताब्दी के शुरुआती सालों में अमेरिकी नौसेना के एक अधिकारी मैथ्यु ने पहला वल्र्ड वेदर मैप तैयार किया। बंगाल के अकाल के बाद ही ब्रिटीश युद्धपोत पूरी दुनियां का चक्कर लगाकर मौसम के आंकड़े इक_ा किया। चार साल में इस पोत ने 27 हजार किलोमीटर की यात्रा किया। साल 2010 में मिशिगन यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर ने इस यात्रा का वृतांत अपनी किताब में दर्ज किया। वक्त के साथ दुनिया के अनेक हिस्सों में मौसम विज्ञान विभागों की स्थापना होती गई।
चक्रवात शब्द पहली बार हैरी पिंडीगटन ने प्रयोग किया
भारत में मौसम और जलवायु का अध्ययन करने के लिए सबसे पहले ईस्ट इंडिया कंपनी ने वेधशालाओं की स्थापना किया। सबसे पहले 1885 और 1796 में कोलकाता में इसकी स्थापना किया गया। इसी के साथ एशियाटिक सोसायटी की स्थापना भी सबसे पहले मौसम के पूर्वानुमान को लेकर ही की गई थी। यह वहीं एशियाटिक सोसायटी थी जिसका उल्लेख भारत के आधुनिक इतिहास में बार-बार किया गया है। 1835 से 1855 तक 40 रिसर्च पेपर कैप्टन हैरी पिंडिगटन ने प्रकाशित किया जिसमें सबसे पहले चक्रवात शब्द का प्रयोग किया गया था। इसके अलावा चक्रवात से निपटने के उपायों के बारे में भी बताया गया था। उल्लेखनीय है कि भारत का पूर्वी उत्तरी हिस्सा आज भी तूफानी चक्रवातों की चपेट में बना रहता है।