फरीदाबाद, खोरी गांव के बाद जमाई कालोनी में भी गरीबों के आशियाने ढहा दिए गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद यहां पर कार्यवाही होना भी लाजिमि था। परंतु इन गरीब लोगों को ये जमीन बेचने वाले राजनीतिक दलों के गुर्गे खुलेआम घूम रहे हैं। ये गरीब यहां फोकट में नहीं बैठे हैं इन्होंने ये जमीन पैसे देकर खरीदी है। क्या सरकार उनके घरों पर भी बुलडोजर चलायेगी या उन लोगों से वसूली करके इन गरीबों के खून पसीने की कमाई के पैसे दिलाने का काम करेगी। इतना ही नहीं, नगर निगम के उन अधिकारियों और जंगलात महकमे के अधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी चाहिए, जिन्होंने इसमे मलाई खाई है। इस मामले में एक दूसरा पहलू ये भी है कि प्रशासन उस वक्त क्यूं सोया रहता है, जब ये कब्जा हो रहा होता है, जब लोग यहां बस रहे होते हैं। इन झुग्गियों में बिजली-पानी की आपूर्ति कैसे हो जाती है। क्यूं ना ऐसे भ्रष्ट और निक्कमें अधिकारियों से वसूली करके इन गरीबों की क्षतिपूर्ति हो। अरावली पर आज भी अनखीर गांव के पीछे और बडख़ल झील के आसपास धड्डले से झुग्गियां बसाई जा रही हैं। इस बात की जानकारी ग्रे फाल्कन में हुई प्रैसवार्ता के दौरान केंद्रीय राजयमंत्री और स्थानीय विधायक को भी दी गई। जिसमें नगर निगम और स्थानीय प्रशासन के सभी अधिकारी मौजूद थे, परंतु कोई कारवाई नहीं। जमाई कॉलोनी से पहले खोरी में जब तोड़ फोड़ की गई थी, तब पीडीतों को छत मुहैया कराने की बात हुई थी परन्तु हुआ कुछ नहीं। उस समय इस जमीन को बेचने वालों की लिस्ट बनी थी और लगभग 22 लोगों के खिलाफ अलग-अलग मुकद्दमे भी दर्ज किए गए थे। जिनमेंं कुछ गिरफ्तारियां भी की गई थी। परन्तु धरातल पर देखा जाए, तो इन लोगों का हुआ कुछ नहीं, क्योंकि इन लोगों को कहीं न कहीं राजनीतिक आकाओं का प्रश्रय भी प्राप्त होता है।
कब होगी फार्म हाउसों एवं मैरिज हॉल्स पर कार्यवाही
21 जुलाई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत अरावली वन क्षेत्र में बने अवैध निर्माणो को 21 अक्तूबर तक हटाना है। मगर, अभी तक नगर निगम एवं वन विभाग केवल जमाई कॉलोनी पर ही अटका हुआ है। इसी भूमि पर तकरीबन 500 हैक्टेयर भूमि पर रसूखदारों के फार्म हाउस, मैरिज होम, कालेज, स्कूल बनें है तो क्या वहां भी माननीय सुप्रीम कोर्ट का आदेश लागू किया जाएगा या कानून की मार भी सिर्फ गऱीबों पर ही पड़ेगी।
तोड़ दिए गरीबों के आशियाने, मगर नहीं छेड़ा दारु का ठेका और पैट्रोल पंप
निगम प्रशासन एवं वन विभाग की संयुक्त कार्यवाही में जहां जमाई कॉलोनी के हजारों आशियाने उजाड़ दिए गए, वहीं अरावली क्षेत्र में बना शराब का ठेका मजबूत चट्टान की तरह जस का तस खड़ा है। अब सवाल यह उठता है कि क्या यह शराब का ठेका और पैट्रोल पम्प जोकि व्यवसयाकि प्रतिष्ठान है, मानवीय संवेदना, छोटे छोटे बच्चे और महिलाओं के आंसुओं से ज्यादा कीमती है। भरी बरसात में महिलाएं जहां तिरपाल की छत बनाकर आंखों में आसूं लेकर भूखे पेट बैठे हैं और ईंटों का चूल्हा बनाकर अपने बच्चों का पेट पालने की कोशिश कर रहे हैं, को किसी प्रकार की सहायता प्रशासन द्वारा उपलब्ध नहीं करवानी चाहिए।
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