सात लाख के इनामी मुन्ना बजरंगी की जेल में हत्या की इनसाईड स्टोरी…सात गोलियां और सात लाख का इनाम…
उम्र के 17 वें साल में ही उसने तमंचे से पहली हत्या कर दी और फिर पीछे मुडक़र नहीं देखा। अपराध की दुनिया की हर जंजीर तोड़ते हुए, कई राज्यों की पुलिस की नींद हराम करने वाला ओमप्रकाश अब मुन्ना बजरंगी कहा जाने लगा…. कौन था मुन्ना बजरंगी और कैसे हुई उसकी जेल में हत्या?
आईए पूरी इनसाईड स्टोरी को जानते हैं वरिष्ठ पत्रकार मार्कण्डेय पांडे से….
अस्सी का दशक और जून की गर्मी का महीना। जौनपुर के एक सिनेमा हॉल के आगे टिकट खरीदने को लंबी लाईन लगी थी। नून शो मतलब 12 से 3 का टिकट लेना था। फिल्म थी जंजीर और लाईन में आगे खड़े होने को लेकर एक युवक ने तमंचा से फायर कर दिया। भगदड़ मची, पुलिस की जीप पहुंची, कई युवक पकड़ गए। लेकिन पुलिस तमंचा बरामद नहीं कर सकी। यह तमंचा महज ढाई सौ रुपए में ओमप्रकाश नाम के एक युवक ने खरीदा था। उम्र के 17 वें साल में ही उसने इसी तमंचे से अपने ही गांव में पहली हत्या कर दी और फिर पीछे मुडक़र नहीं देखा। हत्याओं का सिलसिला जारी हो गया। अपराध की दुनिया की हर जंजीर तोड़ते हुए, कई राज्यों की पुलिस की नींद हराम करते हुए ओमप्रकाश अब मुन्ना बजरंगी कहा जाने लगा….
चाचा के अपमान का लिया बदला
जौनपुर के पूरे दयाल गांव में सामान्य किसान का बेटा ओमप्रकाश जिसे पढऩे के लिए स्कूल भेजा गया लेकिन वह अपराध का ककहरा सीखने लगा। सिनेमा हॉल में मारपीट, शहर में कहीं भी मारपीट, उगाही, धमकी में उसे मजा आने लगा। पुलिस को छकाना, और छोटे-मोटे मामलों में नाम दर्ज होने पर उसका रुतबा बढऩे लगा। महज 17 साल की उम्र में ही गांव में उसके चाचा का किसी से झगड़ा हो गया, चाचा को किसी ने गाली दे दी तो उसे कैसे सहन होता। ढाई सौ रुपए के देशी तमंचे से सटाकर मार दिया और हत्या के जुर्म में जेल चला गया। नाबालिग होने के कारण वह जेल से छूटा भी, तकरीबन इसी समय उसकी शादी हो गई। पत्नी का प्रेम उसे अपराध की दुनिया से वापस नहीं ला पाया और एक के बाद एक वारदातों को अंजाम देना शुरु कर दिया कुछ ही समय में वह सात लाख रुपया का इनामी खूंखार अपराधी बन गया।
मेरा नाम बदनाम मत करो और बदल लिया नाम….
पूर्वांचल के इस कुख्यात माफिया ने 17 साल की उम्र में अपराध की शुरुआत की तो ताबड़तोड़ घटनाओं को अंजाम देता गया। मामलों की फेहरिस्त बढ़ती गई। इसी बीच लगातार पुलिस का छापा, पूछताछ, अपमान से तंग आए परिजनों ने गुहार लगाई कि मां-बाप का नाम बदनाम मत करो। ऐसे में ओमप्रकाश ने तरकीब निकाली की अब वह अपने पारिवारिक नाम के बजाए खुद के रखे नाम से जाना जाएगा और उसने अपना नाम रखा- मुन्ना बजरंगी।
मुख्तार से बढ़ी नजदीकियां
हत्या, लूट, धनउगाही का सिलसिला जौनपुर से चला तो आसपास के जिलों में फैलता गया। बजरंगी माफिया जगत का नया नाम उभरकर सामने आया, जिससे हाथ मिलाने को कई दूसरे कारोबारी माफिया भी आगे आने लगे। बजरंगी को भी अपनी ताकत बढ़ाने और संरक्षण की दरकार महसूस होने लगी थी और वह गाजीपुर के मुख्तार अंसारी के गैंग से जुड़ गया। वक्त के साथ बजरंगी और मुख्तार के ताल्लुकात प्रगाढ़ होते गए और बजरंगी उसके गैंग का मेन और शार्प शूटर माना जाने लगा। गोलीबारी, हत्या और इसके बदले में उसे मोटी रकम अदा कर दी जाती। गैंग में उसका रुतबा भी मुख्तार से कम नहीं माना जाता। एक गैंगवार में बजरंगी बुरी तरह जख्मी हो गया तब मुख्तार ने उसका इलाज कराया और हर तरह की मदद किया जिसके बाद मुख्तार और मुन्ना दोनों बेहद करीबी होते गए।
सात गोलियां लगी और मरकर जिंदा हो गया
करीब आठ से दस साल के आपराधिक जीवन में ही मुन्ना बजरंगी की तलाश उत्तरप्रदेश और बिहार सहित दिल्ली पुलिस को होने लगी। अब वह टॉप मोस्ट वांटेड था, इनाम की राशि बढ़ती गई और उत्तरप्रदेश पुलिस ने सात लाख का इनाम रखा जिंदा या मुर्दा। बात 1998 की है, पुलिस से लुकाछिपी का खेल करता बजरंगी दिल्ली के समयपुर बादली इलाके के एक मकान में रह रहा था। जिसकी लोकेशन पुलिस ने टे्रस कर लिया था। दिल्ली और यूपी पुलिस की ज्वाइंट टीम ने समयपुर बादली के उस मकान को चारों तरफ से घेर लिया और ताबड़तोड़ गोलियां दोनों तरफ से चलने लगी। बजरंगी को सम्हलने का मौका भी नहीं मिला और उसका एक साथी मौके पर ही मारा गया। जबकि बजरंगी को सात गोलियां लगी……
गोलियों की आवाज आनी बंद हुई तो पुलिस सधे कदमों से आगे बढ़ी और खून से लथपथ मुन्ना बजरंगी को पाया। उसे हिलाडूला कर देखा गया, जब उसके शरीर ने कोई हरकत नहीं किया तब पुलिस ने उसकी मौत से चैन की सांस लिया। चारों तरफ खबर फैल गई कुख्यात माफिया डॉन सात लाख का इनामी मुन्ना बजरंगी मारा गया। टीवी और अन्य समाचार माध्यमों में भी खबरों को ब्रेक किया जाने लगा। इस बीच मृतकों को उठाकर पुलिस राममनोहर लोहिया अस्पताल ले आई। स्टे्रचर पर लादकर बजरंगी को जब मेडिकल के लिए लाया गया और डॉक्टरों की टीम पहुंच गई तो अचानक बजरंगी ने आंखे खोली और बोला मैं जिंदा हूं….
पुलिस मुझे मार डालती
पुलिस मुठभेड़ में जब बजरंगी का एक साथी मौत की नींद सो चुका था और बजरंगी को भी सात गोलियां लग चुकी थी तब और फायरिंग की हिम्मत उसमें नहीं रह गई थी। पुलिस सेवा से रिटायर हो चुके एक अधिकारी बताते हैं कि ‘वह लगभग मरा पड़ा था, सांसे थामे वह अस्पताल जाने का इंतजार करता रहा और पुलिस की बातें सुन रहा था। जान बचाने के लिए मर जाने का नाटक किया और अस्पताल में आंखे खोल दी। उसे पता था, जबतक डॉक्टर नहीं आ जाते तब तक पुलिस को पता नहीं चलना चाहिए कि मै जिंदा हूं, नहीं तो पुलिस मार डालेगी।’ बजरंगी बच गया और जल्दी ही ठीक होने के बाद उसे तिहाड़ जेल भेज दिया गया।
400 राउंड चली गोलियां, मारे गए भाजपा विधायक
चार साल बाद मुन्ना बजरंगी तिहाड़ जेल से छूटा तो उसे जीवनदान मिल चुका था और पहले से अधिक खंूखार और शातिर हो चुका था। अपराधिक परिपक्वता भी उसमें आ चुकी थी और गुरु मुख्तार से उसके रिश्ते पहले की तरह प्रगाढ़ थे। पूर्वांचल में रेलवे और कोयले के ठेके से लेकर धनउगाही, वसूली आदि का खेल जारी था। जिसमें मुख्तार के सामने सबसे बड़ी चुनौती बन रहे थे भाजपा विधायक कृष्णानंद राय। मोटी और अकूत कमाई के श्रोतों पर वर्चस्व को लेकर मुख्तार और कृष्णानंद राय की अदावत शुरु हो गई और मुख्तार ने फैसला किया कि कृष्णानंद राय को रास्ते से हटाना है। इसका टास्क सौंपा गया मुन्ना बजरंगी को जो हाल ही में तिहाड़ जेल में आराम फरमा कर आया था। 29 नवंबर 2005 को लखनऊ के करीब कृष्णानंद राय को चारों तरफ से घेरकर 400 राउंड गोलियों की आतिशबाजी हुई और वह मौके पर ही मारे गए। यूपी के इतिहास में गैंगवार में इतनी गोलियां नहीं चली थी, 40 से 60 बुलेट तो सिर्फ कृष्णानंद राय के शरीर से निकाले गए। भाजपा विधायक की दिनदहाड़े हत्या के बाद पूरा देश हिल गया। हांलाकि बाद में मुख्तार अंसारी को इस हत्या से न्यायालय ने बरी कर दिया।
40 से अधिक हत्या के बाद खुद की हत्या का डर
बजरंगी ने अपने आपराधिक जीवन में 40 से अधिक हत्याओं को अंजाम दिया था। ज्यादातर हत्याएं उसने यूपी और बिहार में किया और दिन-प्रतिदिन एसटीएफ के लिए वह चुनौती बनता गया। उसे मालूम था कि एक बार पकड़ा गया तो सीधा एनकाउंटर हो जाएगा। उसने यूपी छोड़ देने में भलाई समझी और यूपी छोडक़र दिल्ली चला गया, इसके बाद अगला ठीकाना मुंबई को बनाया और फिर दुबई चला गया। कहा जाता है कि दुबई वह अंडरवल्र्ड से अपने नए समीकरणों की तलाश में गया। दुबई से आने के बाद उसने नई योजना पर काम करना शुरु किया। एनकाउंटर से बचने का उपाय ढूंढने लगा। देखा कि कई माफिया और अपराधी राजनीति मेें जाकर नई शुरुआत करते हैं और सामान्य जनजीवन के साथ पूरे रुतबे में लौट आते हैं। उसे राजनीति का चस्का लगा और एमएलए का चुनाव भी लड़ा लेकिन हार गया। उसने अपनी पत्नी को चुनाव लड़ाया लेकिन वह भी हार गई।
सात लाख का इनामी जेल के भीतर मौत
अक्टूबर 2009 को दिल्ली पुलिस ने मुंबई पुलिस के स्पेशल सेल की मदद से मुंबई के मलाड से उसे फिर एकबार गिरफ्तार कर लिया और तिहाड़ जेल में लाकर रखा। हांलाकि सबकुछ बजरंगी की योजना से हुआ था, क्योंकि यूपी पुलिस पकड़ती तो एनकाउंटर कर देती। हांलाकि उसे बाद में यूपी पुलिस को सौंप दिया गया। इसी दौरान जब वह झांसी जेल में बंद था तो बहुजन समाज पार्टी के विधायक लोकेश दीक्षित से रंगदारी मांगा। दीक्षित ने इसकी शिकायत पुलिस में दर्ज करा दिया था। उस मामले में धमकी की लोकेशन बागपत आ रही थी तो मामला भी बागपत में शुरु हुआ। इसी सिलसिले में बजरंगी को झांसी जेल से बागपत लाया गया। अगले दिन न्यायालय में पेश होना था और 9 जुलाई 2018 को बिलकुल सुबह ही जेल में अचानक गोलियों की तड़तड़ाहट की आवाज आई और अप्रत्याशित रुप से बजरंगी लहूलूहान औंधे मुंह जमीन पर गिरा था। आरोप पश्चिम के माफिया सुनील राठी पर लगा। वह भी उसी जेल में बंद था और कहा गया कि मामूली झड़प में गोलियां चल गई।
बड़ी साजिश से इंकार नहीं
बताया जाता है कि यह मामूली झड़प नहीं थी इसके पीछे बहुत सारे लोगों ने प्लानिंग कर रखी थी। वह धीरे -धीरे लगभग सभी मामलों में बरी होता जा रहा था। चाहे गवाहों को धमकाकर या सबूतों को मिटाकर जो हैरान करने वाला था। आखिरकार जिस रास्ते पर बजरंगी चल पड़ा था उसकी मंजिल भी यही थी सिर्फ मौत.. खून के बदले खून….