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अयोध्या : कण-कण में राम, हर पत्थर में अहल्या

अयोध्या से मार्कण्डेय पाण्डेय

हाथ में छोटी सी हथौड़ी और छैनी लिए उड़ीसा के प्रमोद मंडल पूरी तल्लीनता से काम में जुटे हैं। पीले रंग का हेलमेट और जैकेट पहने वह दीवार में किसी मूर्ति को तरास रहे हैं। क्या कर रहे हैं ? मुस्कुराते हैं उनको हिंदी नहीं आती लेकिन समझ जाते हैं। कहते हैं बस आधे घंटे में तैयार हो जाएगा… मंडल की तरह ही सैकड़ों मजदूर जो देश के विभिन्न हिस्सों से आए हैं वह अपने काम में डूबे हैं। जैसे हर पत्थर में जान डाल देना चाहते हों।

सरयू की जलधारा बहती रही और सैकड़ों वर्षो का अथक संघर्ष जारी रहा, आंदोलन, बलिदान और अंत में लंबी अदालती कार्यवाही के बाद प्रभु श्रीराम का उनके जन्म स्थान पर मंदिर निर्माण । भूतल का कार्य पूरा हो चुका है और फिनिशिंग का कार्य जारी है। नए घर में श्रीराम प्रभु के दर्शन का रामभक्तों का सपना साकार होने वाला है। हालांकि, मंदिर का सम्पूर्ण निर्माण कार्य वर्ष 2025 में पूरा हो पायेगा किंतु रामलला अपने बाल स्वरूप में 22 जनवरी 2024 में ही विराजमान होंगे। इसी समय मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का शुभकार्य सम्पन्न हो जाएगा।

राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के पत्थरों से बनाए जा रहे भगवान राम के मंदिर के प्रथम चरण का कार्य अपने अंतिम चरण में है। राममंदिर में लगभग 160 स्तंभ लगाए जा चुके हैं, जिन पर नक्काशी के लिए सैकड़ों कारीगर दिन-रात काम कर रहे हैं।
रामलला की प्रतिमा आसमानी और ग्रे कलर के पत्थरों से 5 साल के बालक के स्वरूप पर जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फीट हैं। मूर्ति के प्रारूप के तौर पर 9 इंच से 12 इंच तक के मॉडल हैं।

मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद राम भक्तों को अपने आराध्य के दर्शन लगभग 30 से 35 फीट की दूरी से होंगे। प्रतिमा इतनी बड़ी होगी कि श्रद्धालु भगवान की आंख और भगवान के चरण अपनी आंखों से देख सकेंगे। भक्तों की सुविधा के लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने जन्मभूमि पथ का निर्माण भी कराया है और उसे रामभक्तों के लिए खोल दिया है। इस पथ से रोजाना लाखों श्रद्धालु दर्शन कर पाएंगे।

प्रथम तल पर सपरिवार विराजेंगे भगवान
श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में प्रभु श्रीराम के बाल्यकाल पांच साल के उम्र की मूर्ति हैं, जबकि प्रथम तल पर प्रभु श्रीराम पूरे परिवार के साथ विराजेंगे। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चम्पत राय के अनुसार एक हजार साल तक श्रीराम मंदिर की रिपेयरिंग की जरूरत नहीं होगी। मंदिर के गर्भ निर्माण की सबसे अद्भुत बात यह है कि सूर्य कि किरणें सबसे पहले मंदिर के गर्भगृह को स्पर्श करेंगी। चंपत राय ने बताया कि श्रीराम मंदिर के ग्राउंड फ्लोर के निर्माण का काम पूरा हो गया है। इसी साल अक्टूबर तक मंदिर के ग्राउंड फ्लोर के काम पूरे कर लिए जाएंगे सिर्फ फिनिशिंग टच बचेगा। अभी तक की योजना के अनुसार सेकंड फ्लोर में किसी भी प्रतिमा को स्थापित नहीं किया जाएगा। वह केवल मंदिर को ऊंचाई देने के लिए बनाया जाएगा। फिलहाल, अभी तक मंदिर निर्माण में 21 लाख घन फुट ग्रेनाइट, सैड स्टोन और मार्बल का प्रयोग किया गया है।

चौखट मार्बल व किवाड़ महाराष्ट्र के सागौन की
राममंदिर की चौखट मार्बल व किवाड़ महाराष्ट्र के सागौन लकड़ी की हैं। मंदिर का एक-एक आयाम, एक-एक अंग इस प्रकार से बनाया जा रहा है कि आगामी एक हजार साल तक रिपेयरिंग की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। श्रीराम मंदिर के भूतल में 162 खंभे बनाए गए है। इन खंभों में 4500 से ज्यादा मूर्तियां उकेरी जा रही है। इसमें त्रेता युग की झलक दिखाई देगी। इसके लिए केरल व राजस्थान से 40 कारीगर बुलाए गए है।
हर पिलर में 20 से 24 मूर्तियां
आर्किटेक्ट इंजीनियर अंकुर जैन ने बताया कि हर खंभे को तीन भाग में बांटा गया है। हर पिलर में 20 से 24 मूर्तियां उकेरी जा रही है। ऊपरी हिस्से में 8 से 12 मूर्तियां बनाई जा रही है। बीच के हिस्से में 4 से 8 और नीचे के हिस्से में 4 से 6 मूर्तियां उकेरी जा रही है। इससे जहां मंदिर की भव्यता को चार चांद लग रहे हैं, वहीं, श्रद्धालुओं को प्रथम सीढ़ी पर पांव रखते ही भक्ति व आस्था के सागर में गोते लगाने का अहसास होगा।
घटनाक्रम
-1528 में बाबर के आदेश पर यहां पर मंदिर को ध्वंस करके रामजन्म भूमि पर मस्जिद बनाई गई थी। हिन्दुओं के पौराणिक ग्रन्थ रामायण और रामचरित मानस के अनुसार यहां भगवान राम का जन्म हुआ था, और मस्जिद निर्माण से पूर्व यहां रामलला का भव्य मंदिर हुआ करता था।
-1853 में हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच इस जमीन को लेकर पहली बार विवाद हुआ। जबकि 1849 में अंग्रेजों ने विवाद को ध्यान में रखते हुए पूजा व नमाज के लिए मुसलमानों को अंदर का हिस्सा और हिन्दुओं को बाहर का हिस्सा उपयोग में लाने को कहा।
-1949 में अन्दर के हिस्से में भगवान राम की मूर्ति रखी गई। हालांकि तनाव को बढ़ता देख सरकार ने इसके गेट में ताला लगा दिया।
-1986 में जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया। मुस्लिम समुदाय ने इसके विरोध में बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी गठित की।
-1989 में विश्व हिन्दू परिषद ने विवादित स्थल से सटी जमीन पर राम मंदिर की मुहिम शुरू की और 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में बाबरी ढंाचा को कारसेवकों ने गिरा दिया। पीवी नरसिंह राव की केंद्र सरकार ने 16 दिसम्बर 1992 को लिब्रहान आयोग गठित किया। आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश एम.एस. लिब्रहान को आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।
-लिब्रहान आयोग को 16 मार्च 1993 को तीन महीने में रिपोर्ट देने को कहा गया था, लेकिन आयोग ने रिपोर्ट देने में 17 साल लगाए।
-1993 में केंद्र ने विवादित स्थल सहित संपूर्ण परिसर को अधिग्रहित कर लिया। इस अधिग्रहण को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। चुनौती देने वाला शख्स मोहम्मद इस्माइल फारुकी था। मगर कोर्ट ने इस चुनौती को खारिज कर दिया।
-1996 में राम जन्मभूमि न्यास ने केंद्र सरकार से यह जमीन मांगी लेकिन मांग ठुकरा दी गयी। इसके बाद न्यास ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसे 1997 में कोर्ट ने भी ख़ारिज कर दिया। वर्ष 2002 में जब गैर-विवादित जमीन पर कुछ गतिविधियां हुई तो असलम भूरे नामक व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई।
-2003 में इस पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति कायम रखने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि विवादित और गैर-विवादित जमीन को अलग करके नहीं देखा जा सकता।
-30 जून 2009 को लिब्रहान आयोग ने चार भागों में 700 पन्नों की रिपोर्ट प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और गृह मंत्री पी. चिदम्बरम को सौंपा। ज्ञात हो कि रिपोर्ट सौंपने से पहले जांच आयोग का कार्यकाल 48 बार बढ़ाया गया।
-2010 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने निर्णय सुनाया जिसमें विवादित भूमि को रामजन्मभूमि घोषित किया गया। न्यायालय ने बहुमत से निर्णय दिया कि विवादित भूमि जिसे रामजन्मभूमि माना जाता रहा है, उसे हिंदूओं को दे दिया जाए।
-उच्चतम न्यायालय ने 7 वर्ष बाद निर्णय लिया कि 11 अगस्त 2017 से तीन न्यायधीशों की पीठ इस विवाद की सुनवाई प्रतिदिन करेगी। सुनवाई से ठीक पहले शिया वक्फ बोर्ड ने न्यायालय में याचिका लगाकर विवाद में पक्षकार होने का दावा किया और 70 वर्ष बाद 30 मार्च 1946 के ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती दी जिसमें मस्जिद को सुन्नी वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति घोषित कर दिया गया।
-9 नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने एक लंबी सुनवाई के बाद अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद पर फैसला सुनाया था। 100 सालों से ज्यादा समय से चले इस विवाद को तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में संवैधानिक पीठ ने इस पर फैसला सुनाया कि विवादित जमीन पर हक हिंदुओं का है।
क्या कहते हैं अयोध्या वासी
ब्रजेश मिश्र पेशे से शिक्षक हैं वह कहते हैं कि सैंकड़ों सालों का इंतजार खत्म हुआ है। मन में इतनी प्रसन्नता है कि उसे व्यक्त कर पाने को शब्द नहीं है। मंदिर निर्माण होने से देश का मान बढ़ेगा और इतिहास की गलती का सुधार हो गया है।
शालिनी मिश्र, शोध छात्रा हैं वह कहती है कि अयोध्या, काशी और मथुरा तीन हमारे प्रमुख तीर्थ हैं और इन तीनों पर मुगल काल में हमले हुए हैं। अयोध्या का संघर्ष काफी लंबा चला है जिसमें सारा देश शामिल रहा है। अब काशी और मथुरा का मुद्दा भी हल होना चाहिए, इसके लिए अच्छा होता कि मुस्लिम समाज खुद पहल कर इन स्थानों को हिंदूओं को सौंप देता।
अयोध्या में बैंक कर्मी चंद्रशेखर सोनी कहते हैं कि राम मंदिर का निर्माण हमारे लिए जीवन-मरण का सवाल था। राम हमारे आस्था, विश्वास और संस्कृति की थाती हैं। मंदिर निर्माण की प्रगति की रोज जानकारी जानना चाहता हूं और बहुत खुशी होती है जब मालूम होता है कि कार्य अंतिम चरण में हैं।
अयोध्या में देवकाली निवासी पेशे से शिक्षक मणिबाला कहती है कि भगवान राम के मंदिर निर्माण को लेकर हमलोग कब से इंतजार कर रहे थे। अब मंदिर का निर्माण हो रहा है और बेहद खुशी होती है जिसे व्यक्त नहीं कर सकती।
पेशे से अधिवक्ता वैभव त्रिपाठी कहते हैं कि जल्द ही काशी और मथुरा का समस्या भी हल हो जाए तो अच्छा रहेगा। मंदिर का निर्माण होने से अयोध्या में नई रोशनी, नई रौनक आ गई है। अब अयोध्या पूरी दुनिया में अलग दृष्टी से देखी जाएगी। यह कितने गर्व और सम्मान की बात है।

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