देशभर में भगवान शिव के सैकड़ों मंदिर स्थापित हैं। हर एक मंदिर की अपनी एक मान्यता है। इन्हीं प्राचीन मंदिरों में से है दिल्ली एनसीआर गाजियाबाद में स्थित श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर। यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। माना जाता है कि इस मंदिर में बाबा भोलेनाथ के दर्शन मात्र से हर कष्ट दूर हो जाते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। जानिए श्री दूधेश्वर नाथ मंदिर के बारे में रोचक बातें।शिवरात्रि के उपलक्ष में आज हम आपको इसी मंदिर के दर्शन कराएंगे।
भगवान शिव खुद हुए थे प्रकट
गाजियाबाद के दूधेश्वर नाथ मंदिर का संबंध रावण काल से भी जोड़ा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिंडन नदी के किनारे पुलस्त्य के पुत्र ऋषि विश्रवा ने घोर तपस्या की थी जोकि रावण के पिता थे। इसके साथ ही रावण ने भी पूजा की थी। इसी स्थान को दुधेश्वर हिरण्यगर्भ महादेव मंदिर मठ के रूप में जानते हैं। माना जाता है कि यहां पर भगवान शिव खुद प्रकट हुए थे। आज यहां पर जमीन से तीन फीट नीचे शिवलिंग मौजूद है।
सन्यासी सिद्ध महात्मा को भगवान शिव ने दिए दर्शन
किंवदंती के अनुसार यह मंदिर उस स्थान पर स्थित है जहां कई साल पहले एक गाय ने अपना दूध एक स्थान पर गिरा देती थी। काफी लंबे समय तक ऐसा होने पर गाय के मालिक ने उस गाय पर नजर रखी। फिर उसने देखा कि उस स्थान में गायों के पहुंचते ही दूध की धार बंध जाती है। यह पूरा किस्सा ग्वाले ने गांव वालों को आकर बताया। जिसके बाद गाय के सभी लोग उस स्थान में पहुंच रहे थे। वहीं दूसरी ओर कोट नामक गांव में उच्चकोटि के दसनामी जूना अखाड़े के एक सन्यासी सिद्ध महात्मा को भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन दिए और उस स्थान पर पहुंचने का आदेश दिया। प्रातः इधर गांव वाले लोग पहुंचे और दूसरी तरफ से महात्मा अपने शिष्यों के साथ इस पावन स्थल पर पहुंच गए। इसके बाद खुदाई शुरू की गई। खुदाई के बाद शिवलिंग नजर आएं। इसके बाद उनकी वहां स्थापना करके पूजा की जाने लगी।
माता सीता के साथ विमान से यहां उतरे थे भगवान श्रीराम
बाबा दूधेश्वर नाथ मंदिर का संबंध भगवान श्रीराम से भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद अयोध्या वापसी के दौरान माता सीता के साथ पुष्पक विमान से यहां उतरे थे। उन्होंने यहां नीलम पत्थर के नीले रंग के शिवलिंग की स्थापना कर भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया था। भगवान श्रीराम द्वारा शिवलिंग का दूध से अभिषेक करने पर यहां शिव बाबा दुधेश्वर नाथ के रूप में कालांतर में प्रसिद्ध हुए।शिवलिंग वाली जगह खोदने के बाद बुजुर्गों ने कहा कि आसपास कोई जल स्तोत्र भी है। ऐसे में आसपास खुदाई करने पर एक अनोखा कुआं भी मिला। माना जाता है कि कुएं का पानी कभी मीठा तो कभी दूध जैसा स्वाद देता है। आज भी यह कुंआ मठ में स्थित है।
भगवान विश्वकर्मा द्वारा मंदिर का निर्माण
मंदिर के निर्माण को लेकर मान्यता है कि औरंगाबाद के देव और उमगा के बाद देवकुंड धाम एक ही रात में भगवान विश्वकर्मा द्वारा मंदिर का निर्माण किया गया। यहां का मंदिर पूर्ण नहीं है, जिसके बारे में कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण करते-करते सुबह हो गई थी। इस कारण देव शिल्पी द्वारा निर्माण कार्य रोक दिया गया, जिसकी वजह से मंदिर अधूरा रह गया। देखने पर यह मंदिर आज भी अधूरा लगता है। मान्यता है कि यहां सावन माह में कांवड़ लेकर आने और शिव का जलाभिषेक करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं।
देश विदेश से शिक्षा लेने कोने-कोने से आते हैं विद्यार्थी
साल 2002 में श्री शंकराचार्य जयंती ने यहां एक वेद विद्यापीठ की स्थापना की गई थी। इस मंदिर परिसर के तहत श्री दूधेश्वर विश्वविद्यालय में बीस कक्षाएं शुरू की गई हैं। यह एक समृद्ध पुस्तकालय भी है, जिसमें लगभग आठ सौ ग्रंथ हैं। यहां पर वेद शास्त्रों की शिक्षा लेने देश के कोने-कोने से विद्यार्थी आते हैं।