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Haryana News: मुख्यमंत्री बंसीलाल का सियासी सफर, चार बार के सीएम और कई देशों की यात्रा

Haryana News : चौधरी बंसीलाल एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री रहे। उनका जन्म हरियाणा के भिवानी जिले के गोलागढ़ गांव के जाट परिवार में हुआ। वे 1968-72 ,1972-75, 1986-87 एवं 1996-99 तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला। बंसीलाल को 1975 में आपातकाल के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संजय गांधी का एक करीबी विश्वासपात्र माना जाता था। उन्होंने दिसंबर 1975 से मार्च 1977 तक रक्षा मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दी एवं 1975 में केंद्र सरकार में बिना विभाग के मंत्री के रूप में कार्यकाल रहा। उन्होंने रेलवे और परिवहन विभागों का भी संचालन किया। बंसीलाल लगातार सात बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए। पहली बार 1967 में। उन्होंने 1996 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा विकास पार्टी की स्थापना की। बंशीलाल एक विकास पुरुष और अपने तानाशाही व्यक्तित्व के लिए जाने जाते थे। बंसीलाल का 28 मार्च 2006 को नई दिल्ली में निधन हो गया।

केंद्र सरकार में बिना विभाग के मंत्री रहे

बंसीलाल ने पंजाब यूनिवर्सिटी लॉ कॉलेज, जालंधर में अपनी शिक्षा प्राप्त की। 1972 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय और हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने उन्हें विधिशास्त्र एवं विज्ञान की मानद उपाधि से विभूषित किया। एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में, वे 1943 से 1944 तक लोहारू राज्य में परजा मंडल के सचिव थे। बंसी लाल 1957 से 1958 तक- बार एसोसिएशन भिवानी के अध्यक्ष रहे। 1959 से 1962 तक जिला कांग्रेस कमेटी हिसार के अध्यक्ष थे और बाद में वे कांग्रेस कार्यकारिणी समिति तथा कांग्रेस संसदीय बोर्ड के सदस्य बने। 1958 से 1962 के बीच पंजाब प्रदेश कांग्रेस समिति के सदस्य बने। 21 दिसंबर 1975 से 24 मार्च 1977 तक केंद्रीय रक्षा मंत्री रहे। वे 1980-82 के बीच संसदीय समिति और सरकारी उपक्रम समिति के सदस्य रहे। 31 दिसम्बर 1984 को वे रेल मंत्री और बाद में परिवहन मंत्री बने। दिसंबर 1975 से 20 दिसंबर 1975 तक केंद्र सरकार में बिना विभाग के मंत्री रहे।

वह दो बार 1960 से 2006 और 1976 से 1980 तक राज्य सभा के सदस्य थे। वे तीन बार 1980 से 1984, 1985 से 1986 और 1989 से 1991 तक लोक सभा के सदस्य थे। 1996 में कांग्रेस से अलग होने के बाद, बंसीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी की स्थापना की एवं शराबबंदी के उनके अभियान ने उन्हें उसी वर्ष विधान सभा चुनाव में सत्ता में स्थापित कर दिया।

हरियाणा के चार बार रहे मुख्यमंत्री, कई देशों की यात्रा

बंसीलाल चार बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। वे भगवत दयाल शर्मा एवं राव बीरेंद्र सिंह के बाद हरियाणा के तीसरे मुख्यमंत्री थे। वे 31 मई 1968 को पहली बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने और उस पद पर 13 मार्च 1972 तक बने रहे। बंसीलाल ने म्यानमार, अफगानिस्तान, पूर्व सोवियत संघ, मॉरिशस, तंजानिया, जाम्बिया, सेशेल्स, यूनाइटेड किंगडम, कुवैत, ग्रीस, पश्चिम जर्मनी, नीदरलैंड, बेल्जियम, फ्रांस एवं इटली सहित कई देशों की यात्रा की।

बंसीलाल राज्य विधानसभा के लिए सात बार चुने गए, पहली बार 1967 में कुछ समय के लिए चुने गए। 1966 में हरियाणा के गठन के बाद राज्य का अधिकांश औद्योगिक और कृषि विकास, विशेष रूप से बुनियादी ढांचे का निर्माण लाल की अगुआई के कारण ही हुआ। साठ के दशक के आखिर में और 70 के दशक में मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान वे हरियाणा में सभी गांवों में बिजलीकरण के लिए जिम्मेदार थे। यह वह मॉडल था जिसे बाद में कई राज्यों द्वारा अपनाया गया। कई लोगों द्वारा उन्हें एक “लौह पुरुष” माना जाता है जो हमेशा वास्तविकता के करीब थे और जिन्होंने समुदाय के उत्थान में गहरी दिलचस्पी ली।

बेटे की मृत्यु

बंसीलाल ने 2005 में विधानसभा चुनावों में भाग नहीं लिया लेकिन उनके पुत्र सुरेंद्र सिंह एवं रणवीर सिंह महेंद्र राज्य विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। उनके छोटे बेटे सुरेंद्र सिंह की 2005 में एक विमान हादसे में मृत्यु हो गई थी जिसके बाद पत्नी किरण चौधरी उनकी परम्परागत सीट तोशाम से 2006 के उपचुनाव व 2009 के आम चुनाव में जीत हासिल कर हरियाणा की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री बनी। चौ बंसीलाल की पौत्री स्वाति चौधरी 2009 के लोकसभा चुनाव में भिवानी – महेंद्रगढ़ लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी की सांसद निर्वाचित हुई थी, हालांकि वो इस सीट से 2014 व 2019 में मोदी लहर के चलते इस सीट से परिवार के पुराने राजनीतिक प्रतिद्वंदी धरमवीर से चुनाव हार गई।

चौधरी बंसी लाल के बड़े बेटे चौधरी रणबीर सिंह महेंद्र, मुंढाल निर्वाचन क्षेत्र से विधान सभा (2005) सदस्य रहे है। चौधरी रणबीर सिंह (BCCI) के पूर्व अध्यक्ष भी हैं एवं चौधरी बंसीलाल के ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते, उन्हें स्वाभाविक रूप से चौधरी बंसीलाल की राजनीतिक विरासत के अग्रदूत के रूप में देखा जाता है।

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