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CM, PM और फिर ऐसे बने भारत ‘रत्न’, ‘किसानों के मसीहा’ चौधरी चरण सिंह

देश में कुछ ही राजनीतिक नेता ऐसे होंगे जो जमीनी स्तर पर चरण सिंह जैसी पकड़ बनाने में माहिर थे. वो एक समर्पित और सामाजिक न्याय वाले नेता थे. एक ऐसा नेता जिसने किसानों के मुद्दों पर अपनी आवाज को मुखरता से उठाया.

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को ‘भारत रत्न’ देने की घोषणा की गई है. पिछले कई सालों से राष्ट्रीय लोकदल यानी RLD की तरफ से ऐसी मांग उठाई जा रही थी. चौधरी चरण सिंह की गिनती भारत के बड़े किसान नेताओं में होती है. वो भारत के पांचवें प्रधानमंत्री रहे. दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और एक बार भारत के प्रधानमंत्री रहे. देश में कुछ ही राजनीतिक नेता ऐसे होंगे जो जमीनी स्तर पर चरण सिंह जैसी पकड़ बनाने में माहिर थे. वो एक समर्पित और सामाजिक न्याय में विशवास रखने वाले नेता थे. एक ऐसा नेता जिसने किसानों के मुद्दों पर अपनी आवाज को मुखरता से उठाया.

चरण सिंह का जन्म 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर में एक मध्यम वर्गीय किसान परिवार में हुआ था. उन्होंने 1923 में साइंस में ग्रैजुएशन पूरी की और 1925 में आगरा विश्वविद्यालय से पोस्ट ग्रैजुएशन. कानून की भी पढ़ाई की. चरण सिंह महात्मा गांधी की अहिंसा से प्रभावित थे और इस तरह भारत के आजादी आंदोलन में प्रवेश किया. इस दौरान कई बार जेल भी गए. 1930 में नमक कानूनों के उल्लंघन के लिए उन्हें अंग्रेजों ने 12 साल के लिए जेल भेज दिया. सत्याग्रह आंदोलन के लिए नवंबर 1940 में उन्हें फिर से एक वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया. अगस्त 1942 में उन्हें डीआईआर के तहत फिर से जेल में जाना पड़ा. नवंबर 1943 में रिहा हुए.

चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक सफर

1929 में कांग्रेस ज्वाइन करने के बाद चौधरी चरण सिंह पहली बार 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए. इसके बाद 1946, 1952, 1962 और 1967 में भी विधानसभा के लिए चुने गए. 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और रेवेन्यू, हेल्थ, न्याय, सूचना जैसे अलकग विभागों में काम किया. जून 1951 में स्टेट कैबिनेट मिनिस्टर बने और 1952 में डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में एग्रीकल्चर मिनिस्ट्री से लेकर 1966 तक चरण सिंह के पास कोई न कोई मंत्रालय बना रहा. 1960 में श्री सी.बी. गुप्ता के मंत्रालय में वे गृह और कृषि मंत्री 1960 थे. सुचेता कृपलानी के मंत्रालय में चरण सिंह ने कृषि और वन मंत्री के रूप में काम किया.

1 अप्रैल 1967 को चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी छोड़कर भारतीय क्रांति दल नाम से अपनी पार्टी बना ली. कांग्रेस के 16 विधायक भी साथ आ गए. चौधरी चरण सिंह ने इसी साल उत्तर प्रदेश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई. लेकिन मतभेदों की वजह से ये सरकार ज्यादा दिन टिक नहीं पाई. 17 अप्रैल 1968 को इस्तीफ़ा देना पड़ा. 2 साल बाद 1970 में कांग्रेस पार्टी के सपोर्ट से दूसरी बार यूपी के सीएम पद की शपथ ली. लेकिन 2 अक्टूबर 1970 से यूपी में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था.

1975 में इंदिरा ने आपातकाल का विवादित फैसला लिया. सैंकड़ों नेता जेल में डाल दिए गए. 26 जून 1975 की रात चरण सिंह भी जेल में थे. इसके बाद पूरा विपक्ष लामबंद हो गया. 1977 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा बुरी तरह हार गईं. देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने मिलकर जनता पार्टी की सरकार बनाई. मोरार जी देसाई प्रधानमंत्री बने. चरण सिंह इस सरकार में उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे. लेकिन चरण सिंह और मोरारजी देसाई के बीच मतभेद होना शुरू हो गया. बात इतनी बढ़ी कि मोरार जी की सरकार गिर गई.

जब जनता पार्टी से अलग हुए तो चरण सिंह ने नई पार्टी बना ली. नाम दिया लोकदल. चुनाव निशान रखा गया हल जोतता हुआ किसान. 28 जुलाई 1979 को कांग्रेस और दूसरे दलों के समर्थन से चौधरी चरण सिंह देश के पांचवे प्रधानमंत्री बने. लेकिन इंदिरा गांधी के समर्थन वापस लने की वजह से ये सरकार भी गिर गई. चरण सिंह को इस्तीफ़ा देना पड़ा.

किसानों के लिए थे मसीहा

एक जुलाई 1952 को उत्तर प्रदेश ने जमींदारी प्रथा को उखाड़ फेंका. भूमि संरक्षण कानून साल 1954 में पारित हुआ. लाखों की संख्या में किसान रातोंरात जमीन के मलिक हो गए. जिन लोगों ने अंग्रेजों के संरक्षण में हजारों बीघा जमीन पर कब्जा कर लिया था, उनसे जमीनें छीन कर उन गरीब किसानों को दी गईं. कृषि में तरह-तरह की छूट, आर्थिक मदद के तरीके भी उन्हीं की देन हैं. भारत सरकार में पहुंचे तो किसानों को समर्थन देने वाले नाबार्ड की स्थापना की.

खाली समय पढ़ने-लिखने में बितता था

चौधरी चरण सिंह का सादगी भरा जीवन था. अपने खाली समय में उन्हें पढ़ने और लिखने का बहुत शौक था. कई पुस्तकें के वो लेखक भी रहे. जिनमें ‘Abolition of Zamindari, Co-operative Farming X-rayed, Indias Poverty and its Solution, Peasant Proprietorship or Land to the Workers और Prevention of Division of Holdings Below a Certain Minimum शामिल हैं. 29 मई 1987 को चौधरी चरण सिंह ने आख़िरी सांस ली.

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