बीजेपी और संघ के तमाम मुद्दों में से ज्यादातर को अमलीजामा पहनाया जा चुका है. इस बीच मोदी सरकार ने अंतरिम बजट में जनसंख्या नियंत्रण पर समिति गठित करके इसे देश में सार्वजनिक बहस का मुद्दा बनाने की पहल कर दी है.
बढ़ती जनसंख्या को लेकर केंद्र सरकार चिंतित है, जिस पर अंकुश लगाने की दिशा में पहला कदम उठाया है. मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का आखिरी और अंतरिम बजट पेश करते हुए गुरुवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि जनसंख्या वृद्धि और डेमोग्राफिक चेंज से पैदा होने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार एक कमेटी का गठन करेगी. यह समिति ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य के संबंध में इन चुनौतियों से व्यापक रूप से निपटने के लिए सिफारिशें करने का काम करेगी. जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में मोदी सरकार का निर्णायक पहल करने की दिशा में यह बड़ा संकेत माना जा रहा है.
अंतरिम बजट पेश किए जाने के बाद केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस दौरान बढ़ती आबादी को लेकर बनाई गई कमेटी पर सवाल किया गया तो सीतारमण के बगल में बैठे अजय सेठ ने कहा कि हम जनसांख्यिकीय की बात करते हैं तो ये अवसर और चुनौती दोनों हैं. कमेटी का काम अवसर और चुनौती को पहचानकर सिफारिश करना है. इससे पहले वित्त मंत्री ने बजट पेश करते हुए कहा कि विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के संबंध में इन चुनौतियों पर समग्रता से काम करने के बारे में सिफारिशें देने के लिए यह समिति गठित की गई है.
वित्तमंत्री के समिति बनाने के ऐलान के बाद सवाल उठ रहे हैं कि मोदी सरकार 2024 में क्या तीसरी बार सत्ता में लौटती है तो फिर देश के बढ़ती आबादी पर अंकुश लगाने के लिए ठोस कदम उठाएगी? यह बात इसलिए कही जा रही है क्योंकि निर्मला सीतारमण ने बजट पेश करते हुए जनसंख्या नियंत्रण की चुनौती से निपटने के लिए समिति बनाने की बात ऐसी ही नहीं कही बल्कि उसके राजनीतिक मायने भी हैं.
बीजेपी और संघ के तमाम मुद्दों में से ज्यादातर को अमलीजामा पहनाया जा चुका है. समान नागरिक संहिता और जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में कदम उठाए जाना बाकी है. वित्त मंत्री ने बजट पेश करते हुए संसद में जब इस संबंध में समिति बनाई है, जिसके बाद साफ है कि मोदी सरकार का अगला एजेंडा जनसंख्या नियंत्रण कानून होगा.
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में दूसरी बार सत्ता संभालने के बाद 15 अगस्त 2019 को लाल किले के प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए तेजी से बढ़ रही जनसंख्या को लेकर अपनी चिंता जाहिर करते हुए देशवासियों से छोटे परिवार की अपील की थी. उन्होंने कहा था कि छोटा परिवार रखना भी देशभक्ति है. पीएम ने कहा था,’हमारे यहां जो बेतहाशा जनसंख्या विस्फोट हो रहा है. यह जनसंख्या विस्फोट हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए अनेक संकट पैदा कर सकता है. बच्चे के जन्म से पहले उसकी जरूरत के बारे में जरूर सोचें. शिक्षित वर्ग ऐसा ही करता है.’
मोदी सरकार ने अंतरिम बजट में जनसंख्या नियंत्रण पर समिति गठित करके इसे देश में सार्वजनिक बहस का मुद्दा बनाने की पहल कर दी है. मौजूदा समय में देश की आबादी 140 करोड़ से ज्यादा है. आबादी के लिहाज से भारत दुनिया में नंबर वन पर पहुंच चुका है. भारत 2023 में आबादी के मामले में चीन को पछाड़कर नंबर वन बना है. देश में बढ़ती जनसंख्या वृद्धि भारत के लिए आने वाले वक्त में एक मुश्किल समस्या बन सकती है क्योंकि विस्फोटक स्थिति बन गई है. इस बात को ध्यान में रखते हुए मोदी सरकार ने एक समिति का गठन कर अपनी मंशा साफ कर दी है कि 2024 में सत्ता में लौटते ही उसका मुख्य एजेंडा यही मुद्दा होगा?
बजट भाषण में डेमोग्राफी चेंज का भी जिक्र
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में डेमोग्राफी चेंज का भी जिक्र किया है यानी आबादी का असंतुलन. मोदी सरकार 2024 में सत्ता में आने पर बढ़ती आबादी को नियंत्रित करने के लिए ठोस पहल कर सकती है क्योंकि सत्तापक्ष के साथ-साथ विपक्ष भी इस मुद्दे पर एकमत है. पीएम मोदी से पहले 70 के दशक में कांग्रेस ने भी जनसंख्या नियंत्रण के लिए कदम उठाया था. हालांकि, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे और कांग्रेस नेता संजय गांधी ने देश में जनसंख्या नियंत्रण के लिए नसबंदी अभियान चलाया था.
कांग्रेस सरकार के दौरान पुलिस अधिकारियों के लिए नसबंदी का कोटा तय कर दिया गया था कि कम से कम इतने लोगों की नसबंदी होनी ही चाहिए. नतीजा ये हुआ कि गांव हो या शहर हर जगह लोगों की जबरन नसबंदी की खबरें आने लगी थीं. एक साल के भीतर ही लगभग 62 लाख लोगों की नसबंदी की गई थी.
संजय गांधी के परिवार नियोजन के तरीके को लेकर काफी सवाल खड़े हुए थे. इसका नतीजा था कि 1977 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को बड़ी हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद केंद्र की किसी भी सरकार की नसबंदी अभियान को उस पैमाने पर लागू करने की हिम्मत नहीं हो सकी है. ऐसे में मोदी सरकार को देश में जनसंख्या को नियंत्रण के लिए बहुत ही सावधानी के साथ कदम रखना होगा.
आत्मविश्वास से भरी हुई है मोदी सरकार
तीन दशक से जनसंख्या नियंत्रण के लिए बहस जारी है. 1991 में सीनियर कांग्रेस नेता के करुणाकरण के नेतृत्व में एक कमेटी ने जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में जो सुझाव दिए थे. कमेटी ने जनप्रतिनिधियों के लिए यह शर्त अनिवार्य रूप से लागू करने को कहा गया था कि उनके दो से अधिक बच्चे नहीं हों, लेकिन वह प्रस्ताव लागू नहीं हो सका. हालांकि, कुछ राज्यों ने पंचायत स्तर पर इसकी कोशिश की है, लेकिन उसी रिपोर्ट से इनपुट लेते हुए मोदी सरकार ने भी पिछले दिनों कानून मंत्रालय को इस दिशा में बेहतर कानून के विकल्प तलाशने को कहा था.
मोदी सरकार ने अब बजट में एक कमेटी गठन का प्रस्ताव देकर ठोस संकेत दे दिया कि इस संवेदनशील मसले पर सरकार निर्णायक तरीके से आगे बढ़ने को तैयार है, जिसके लिए बकायदा एक समिति गठन करने की बात कही है. इस तरह सरकार बहुत ही रणनीति के तहत इस दिशा में अपने कदम बढ़ा रही है और वित्त मंत्री ने संसद में बजट पेश करते हुए अपनी मंशा भी जाहिर कर दी है.
मोदी सरकार 2024 के चुनाव में अपनी वापसी को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त और आत्मविश्वास से भरी हुई है क्योंकि वित्त मंत्री ने 2024 में चुनाव जीतकर जुलाई में पूर्ण बजट के जरिए रोडमैप पेश करने का दावा किया. यह आत्मविश्वास तभी आता है जब चुनाव जीतने और फिर से सरकार बनाने का पूरा विश्वास हो. ऐसे में साफ है कि सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में जनसंख्या नियंत्रण और यूसीसी को अमलीजामा पहनाने की दिशा में कदम बढ़ा सकती है?