दिल्ली से लेकर गाजियाबाद, नोयडा और लखनऊ तक गंजेडिय़ों का कोडवर्ड है जिसे समझ पाना पुलिस के लिए सिरदर्द बना हुआ है। नशे का कारोबार कहे या मौत का सौदा पुलिस को चकमा देने के लिए इसके सौदागर तरह-तरह का पैंतरा बदल रहे हैं। प्रदेश में नशे का कारोबार फिल्मी नामों से जारी है।
मौत के इस जहरीले पुडिय़ा का नाम है मिठाई। जी हां पुलिस और नारकोटिक्स विभाग को चकमा देने के लिए इसे मिठाई कहकर मांगा जाता है। यह मिठाई भी अलग-अलग फिल्मी नामों से मौजूद है, रेट भी अलग तो मदहोशी भी अलग होती है। राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश के विभिन्न शहरों में ड्रग्स, स्मैक, गांजा का कारोबार पसरता जा रहा है। यहां तक की अब यह छोटे शहरों में भी धडल्ले से उपलब्ध है और नई उम्र के युवाओं को तबाह कर रहा है।
गांजा को बेचने के लिए कोडवर्ड का प्रयोग किया जाता है जिसे सुनने के बाद किसी को शक नहीं होता। यहां तक कि पुलिस भी चकमा खा जाती है। ज्यादातर तस्कर झुग्गी-झोपडिय़ों में रहते हैं और नेपाल बिहार आदि स्थानों से आने वाले गांजा, स्मैक को छोटी-छोटी पान की दुकानों के अड्डे के माध्यम से बेचते हैं। पांच ग्राम की पुडिय़ा पचास से सौ रुपए तक बेची जाती है। जबकि स्मैक को सौ रुपए से दो सौ रुपए तक बेचा जाता है। लगभग यही रेट चरस का भी बाजार में है। इनके ग्राहक बंधे होते हैं, पूरा भरोसा हो जाने के बाद ही दुकानदार ग्राहकों को बेचता है। यहां तक कि दुकानदार अपने नियमित ग्राहकों को पहचान लेता है।
बिहार झारखंड से आता है जोहार
आदिवासी समाज में जोहार शब्द अभिवादन का माना जाता है। लेकिन नशे के कारोबारियों ने इसे गांजा का नाम बना दिया है। अजीबो गरीब नामों से गांजा, स्मैक, चरस बेचा जा रहा है जिसमें कैटरिना, पुष्पा, जोहार, बाहुबली, धूंवा, जहर, गोला, रितिक, पुडिय़ा, ग्रास, मेथी, बूटा, मिठाई, हरौनी आदि नामों से गांजा, स्मैक, चरस उपलब्ध है। इनके क्वालिटी और रेट अलग-अलग होते हैं। ज्यादातर नई उम्र के युवक इसके गिरफ्त में आकर अपने जीवन को बर्बाद कर रहे हैं।