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गुरुदेव से केवल मंत्र दीक्षा ही नहीं, अपितु जीवन जीने की कला भी करनी है प्राप्त : स्वामी दिव्यानंद महाराज

गुरुग्राम। धार्मिक शब्दों को प्रवचनों में प्रयोग कर लेना यह बहुत सरल है यथा निष्काम कर्म योग, भक्ति, तत्त्व ज्ञान और प्रेम अथवा उपासना इन पर कई घंटे व्याख्यान यह बहुत ही सरल है, लेकिन गोपियों जैसी आराधना, उपासना व प्रेम का होना बिल्कुल अलग है। गोपियों का भगवान श्रीकृष्ण में पूरी तरह से बिना शर्त समर्पित कर देना भी अलग घटना है। इसी प्रकार मंत्र दीक्षा देकर स्वयं को गुरू मान लेना और सामने वाले को शिष्य मान लेना यह अलग बात है, लेकिन सच्चे अर्थ में सद्गुरू होना और शिष्य होना यह तो एक बहुत बड़ी सिद्धि और शिष्य की साधना है। उक्त उद्गार गीताज्ञानेश्वर डा. स्वामी दिव्यानंद महाराज ने ज्योति पार्क स्थित गीता आश्रम में आयोजित 3 दिवसीय व्यास पूजा आराधना महोत्सव का शुभारंभ करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि गुरूदेव तो स्वयं ब्रह्म तत्त्व होते हैं, साधक के लिए प्रभु का द्वार होते हैं। गुरूदेव शिष्य के लिए प्रभु मिलन की एक गारंटी स्वरुप होते हैं। महाराज जी का कहना है कि गुरूदेव तो खरा सोना  होते हैं जैसे सोना में जंग नहीं लगता गुरूदेव भी जगत में रहते हुए निर्विकार होते हैं। वह सेवा के नाम पर समर्पित होते हैं। संस्था के अध्यक्ष राजेश गाबा का कहना है कि कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु, महिला-पुरुष शामिल हुए। समाजसेवी वेद आहूजा, अशोक अत्रेजा, मोहन कृष्ण भारद्वाज, विनी मलिक, जेबी कौशिक, कैलाश राठौर आदि ने विधिवत रुप से पूजा कर महाराज जी का आशीर्वाद भी लिया। उनका कहना है कि इसी प्रकार एक अन्य कार्यक्रम में ओम स्वीट्स की नूतन कार्यशाला का भी हवन-यज्ञ के साथ शुभारंभ कराया गया, जिसमें धर्मप्रेमी अंकित कथूरिया आदि भी शामिल हुए। 

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