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नीतीश कुमार लगातार हैं बिहार के मुख्यमंत्री, लेकिन क्यों नहीं लड़ते चुनाव

नीतीश कुमार आखिरी बार 2004 में चुनाव में उतरे थे, इस चुनाव में उन्हें एक ऐसा सदमा लगा जिसके बाद वह कभी चुनावी मैदान में नहीं उतरे. सुशासन बाबू अब तक 9 बार बिहार के सीएम पद की शपथ ले चुके हैं. हर बार ही वह विधान परिषद से ही चुने गए हैं.

बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने मंगलवार को विधानपरिषद के लिए फिर अपना नामांकन दाखिल कर दिया. उनका विधान परिषद सदस्य चुना जाना तय है. 11 रिक्त सीटों में जेडीयू के हिस्से में जो दूसरी सीट आनी है उससे खालिद अनवर चुने जाएंगे. यह लगातार चौथा मौका होगा जब नीतीश कुमार एमएलसी बनेंगे. सबसे खास बात ये है कि अब तक नीतीश कुमार नौ बार सीएम पद की शपथ ले चुके हैं, लेकिन एक बार भी विधायक रहते हुए सीएम की कुर्सी पर नहीं बैठे, हर बार उन्होंने विधान परिषद को ही चुना. एक बार फिर नीतीश कुमार वही करने वाले हैं.

नीतीश कुमार बिहार की सत्ता पर लगातार 20 साल से काबिज हैं, जीतनराम मांझी को सीएम बनाकर नीतीश ने 278 दिन के लिए सीएम की कुर्सी छोड़ी जरूर लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से सत्ता की बागडोर खुद ही थामे रहे थे. इतने सालों में नीतीश ने अपनी छवि एक विकास पुरुष के तौर पर स्थापित की, लेकिन चुनाव में उतरने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. राजनीतिक विशेषज्ञ इसके पीछे कारण उस सदमे को मानते हैं जो उन्हें 2004 के चुनाव में लगा था. आइए समझते हैं कि आखिर इतने साल बिहार के सीएम रहने के बावजूद नीतीश कुमार चुनाव में क्यों नहीं उतरते?

जनता पार्टी से की थी सक्रिय राजनीति की शुरुआत

नीतीश कुमार ने सक्रिय राजनीति की शुरुआत 1977 में जनता पार्टी से की थी. मूल रूप से नालंदा जिले से ताल्लुक रखने वाले नीतीश कुमार के पिता पेशे से वैद्य थे. एनआईटी पटना से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही वह राजनीति में सक्रिय हुए और जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. इस आंदोलन में नीतीश के साथी बिहार के कद्दावर नेता लालू प्रसाद यादव और सुशील कुमार मोदी थे. 1977 में ही वह जनता पार्टी से जुड़े और चुनावी राजनीति में किस्मत आजमाई. हालांकि लगातार दो बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

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