इत्र की खुशबू और इमरती की मिठास समेटे गोमती नदी के किनारे बसा ऐतिहासिक शहर है जौनपुर. कहा जाता है कि 14वीं शताब्दी में फिरोज शाह तुगलक ने अपने भाई मुहम्मद बिन तुगलक की याद में इसे बसाया था. जब तुगलक ने इस शहर को बसाया था तब इसका नाम जौना खां रखा था जो आगे जौनपुर हो गया.
जौनपुर कभी कांग्रेस पार्टी का गढ़ हुआ करता था लेकिन पिछले 40 सालों से उसे यहां जीत नसीब नहीं हुई है. कांग्रेस से आखिरी बार 1984 में कमला प्रसाद सिंह ने जीत दर्ज की थी. तब से अब तक गोमती में बहुत पानी बह चुका है. यहां कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. ब्राह्मण और राजपुत बहुल जौनपुर में सबसे ज्यादा बार राजपूत जाति के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है.
बीजेपी ने शनिवार (2 मार्च ) को जब अपनी पहली सूची जारी की तो जौनपुर चर्चा में आ गया है. दरअसल बीजेपी ने कृपाशंकर सिंह को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है. जौनपुर के रहने वाले कृपाशंकर सिंह महाराष्ट्र में कांग्रेस के कद्दावर नेता थे. अभी हाल में ही वो बीजेपी में शामिल हुए हैं.
1952 में हुए पहले चुनाव में यहां कांग्रेस पार्टी के बीरबल सिंह ने जीत दर्ज की थी. वो लगातार यहां से दो बार सांसद चुने गए. जौनपुर वही सीट है जहां कभी जनसंघ के मुखिया पंडित दीन दयाल उपाध्याय को हार का सामना करना पड़ा था. 1963 में जनसंघ सांसद ब्रह्मजीत सिंह के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजदेव सिंह ने पं दीनदयाल को शिकस्त दी थी. इसके बाद 2019 में बीजेपी प्रचंड मोदी लहर में भी यहां चुनाव हार गई.मायावती और अखिलेश यादव के साथ आने के बाद यहां बीजेपी के कृष्ण प्रताप सिंह को बीएसपी के श्याम सिंह यादव ने 80936 वोटों से हराया था.
2019 चुनाव में बीजेपी को यहां हार का सामना करना पड़ा. बीजेपी की तरफ से कृष्ण प्रताप सिंह मैदान में थे. कृष्ण प्रताप सिंह ने 2014 में बीएसपी के सुभाष पांडेय को शिकस्त देकर ये सीट जीती थी. दरअसल 2019 में यूपी की राजनीति में बुआ-भतीजा के नाम से मशहूर हुए मायावती-अखिलेश साथ आ गए. दोनों की पार्टी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा. सपा बसपा ने बीजेपी को यहां करारी शिकस्त दी. बसपा सपा के उम्मीदवार को यहां 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे. पांच साल बाद अब स्थिति अलग है. बुआ भतीजे की राह अलग हो गई है. पूरी संभावना है कि सपा-बसपा अलग-अलग चुनाव लड़ेगी. हालाकि सपा के साइकिल को हाथ यानि कांग्रेस का साथ मिल रहा है.
पहले कांग्रेस का दबदबा, अब 50 हजार वोट भी नहीं
बात कांग्रेस की हो रही है तो यह भी जिक्र कर दें कि जौनपुर सीट पर कभी कांग्रेस का दबदबा था. कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार यहां से 6 बार लोकसभा पहुंचे हैं. लेकिन अब ये बात पुरानी हो गई है. कांग्रेस से यहां आखिरी बार करीब 40 साल पहले 1984 में किसी ने चुनाव जीता था. तब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में कमला प्रसाद सिंह जीत दर्ज करने में कामयाब हुए थे. तब से अबतक गोमती में बहुत पानी बह चुका है. 2019 चुनाव में जब यूपी में कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी ने अपने हाथों में ली थी तब कांग्रेसियों को उम्मीद जगी थी. लेकिन कांग्रेस मुकाबले में भी नहीं रही. उनके उम्मीदवार को यहां महज 27 हजार 185 वोट ही मिले.
क्या है जौनपुर का जातीय गणित
जौनपुर में दूसरी जातियों की तुलना में राजपूत और ब्राह्मणों की जनसंख्या ज्यादा है. यहां ब्राह्मणों की संख्या 243810 है. जबकि राजपूत 191184 है. मुस्लिमों की आबादी 221254 है. जबकि अनुसूचित जातियों की संख्या 231970. जौनपुर में अब तक हुए चुनाव में सबसे ज्यादा सांसद राजपूत जाति के रहे हैं. इधर बीजेपी प्रत्याशी के नाम का ऐलान होने के बाद जौनपुर के बीएसपी सांसद रहे धनंजय सिंह ने भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है.
बीजेपी का कृपाशंकर पर दाव
2009 में बीएसपी की टिकट पर जीतने वाले धनंजय सिंह 2014 में कुछ खास नहीं कर पाए थे. इधर कृपाशंकर सिंह के नाम की घोषणा से पहले अभिषेक सिंह भी यहां से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे. 2011 बैच के IAS अधिकारी रहे अभिषेक सिंह ने पिछले साल अक्टूबर में नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. वह क्षेत्र में लगातार सक्रिय थे. जौनपुर के लोगों को राममंदिर दर्शन कराने ले जा रहे थे. लेकिन बीजेपी ने महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस का बड़ा चेहरा रहे कृपाशंकर सिंह को टिकट दिया है. कांग्रेस पार्टी से राजनीतिक सफर शुरू करने वाले कृपाशंकर सिंह विलास राव देशमुख सरकार में गृह राजमंत्री रह चुके हैं. कृपाशंकर सिंह के मैदान में आने के बाद पूर्वांचल के हॉट सीट कहे जाने वाले जौनपुर में बीजेपी की तरफ से भले ही चर्चाओं पर विराम लग गया है लेकिन सियासी पारा चढ़ गया है.