ताज़ा पॉलिटिक्स राष्ट्रीय

विकास दूबे एनकाउंटर, आत्मसमर्पण या गिरफ्तारी क्या है कहानी

स्कूली जीवन की गुंडागर्दी, मारपीट और छात्रों की गोलबंदी से शुरु हुई थी प्रदेश का नामी अपराधी बनने की कहानी। जिसने उत्तरप्रदेश सरकार को हिला दिया था और प्रदेश की पुलिस को खुली चुनौती दे दी थी। आईए जानते हैं कानपुर वाले विकास दूबे की कहानी मार्कण्डेय पांडे से……

‘‘आठ पुलिस वालों की शहादत बेकार नहीं जाएगी, जिसने भी यह किया है वह पछताएगा और एक नजीर होगा’’ यह बिकरु कांड के पांच दिन बाद यूपी के एडीजी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में ऐलान कर दिया था। अब आगे क्या हुआ ?

वो काली रात… कुछ लाशें पड़ी थी, कुछ लहूलूहान पड़े थे
घुप्प अंधेरा और सन्नाटा पसरा था… रुक-रुक कर गोलियों की आवाज आ रही थी। कुछ पुलिस वाले खेत में तो कुछ एक टैक्टर की आड़ में पोजीशन लिए छिपे थे। कुछ अपनी गाड़ी से बाहर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे। कुछ लाशें पड़ी थी तो कुछ गोलियां लगने से घायल खून से लथपथ पड़े थे। गांव में भीतर घुसने के रास्ते पर जेसीबी मशीने खड़ी कर दी गई थी और रास्ते खोद दिए गए थे। जिससे पुलिस की गाडिय़ां गांव में अंदर प्रवेश न कर सके। जेसीबी को भी इस तरह से खड़ा किया गया था जिससे पुलिसकर्मी एक-एक करके ही प्रवेश करते जाएं और छतों सेआने वाली गोलियों का शिकार होते जाएं। गांव में बिजली काट दी गई थी। लोग घरों की छतों पर पोजिशन लेकर बैठै थे, छतों पर पूरी तैयारी थी। असलहे से लेकर, ढेला, पत्थर और गर्म पानी तक फेंकने के लिए इंतजाम कर लिया गया था। इस घमासान में आठ पुलिसकर्मियों को जान से हाथ धोना पड़ा था।


बड़ी खबर देता हूं जगह बचाकर रखिए
बवाली कानपुरिया पुस्तक के लेखक और एक राष्ट्रीय दैनिक अखबार के क्राईम रिर्पोटर संजीव मिश्र मौके पर मौजूद थे। बताते हैं कि ‘‘रात को काम खत्म करके हमलोग घर आ गये थे और अब सोने जा रहे थे। तभी सिरहाने रखा मोबाईल बजा और एक रिर्पोटर ने फोन किया जल्दी निकलिए बिकरु चलना है। हमलोग रात के सन्नाटे में गाडिय़ों को पूरी स्पीड से चलाते बिकरु की तरफ भाग रहे थे और पुलिस के लोगों को फोन मिला रहे थे। फोन बंद या नॉट रिचेबल एकाध ने फोन उठाया तो बोला बाद में बात करेंगे। तभी हम समझ गए कि कुछ बड़ा हो गया है।’’ मौके पर पुलिस की अन्य गाडिय़ां आ चुकी थी और रिर्पोटर ने अपने अखबार को फोन किया ‘‘बड़ी खबर देता हूं जगह बचाकर रखिए।’’ पुलिस की गाडिय़ा आ चुकी थी और घायलों को उठाकर अस्पताल ले जाने की कोशिश शुरु हो गई थी।

भईया आज दबिश पड़ेगा, हट जाना
बिकरु के विकास दूूबे को जानकारी मिल चुकी थी कि आज पुलिस दबिश देने आ रही है। लेकिन वह बेखौफ था और जमकर मोर्चा लेने को तैयार बैठा था। पूरे गैंग को तैयारी के साथ आने को कहा गया, महिलाओं को भी छतों पर ईंट-पत्थर के साथ सहेज दिया गया। सबको रात भर जागना है, गांव की बिजली गुल कर दी गई और गांव के भीतर आने वाले रास्तों को खोद दिया गया। शाम को भंडारा बना और सभी ने डटकर भोजन किया और दो जुलाई की रात छतों पर मुस्तैद हो गए। विकास का ऐलान था ‘‘कोई बचकर न जाने पाए’’। आरोप पुलिस पर ही लगता है कि किसी ने दबिश की जानकारी पहले ही पहुंचा दी थी और सीओ समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए।

दो जुलाई के पीछे कारण क्या था
विकास के रिश्ते की भतीजी की शादी नेवादा में हुई थी और भतीजी की ननद की शादी पास के ही गांव जापेपुर में हुई थी। ननद के का पति का नाम राहुल तिवारी है। राहुल की पत्नी मायके की संपत्ति में अपना हिस्सा मांग रही थी। उसने मायके की कुछ सम्पत्ति को कब्जा भी कर लिया था। जिसके बाद भतीजी ने विकास से मदद मांगी और वह पहुंच गया जापेपुर जहां पर उसने राहुल तिवारी की जमकर पिटाई की और कब्जा छुड़वाकर वापस रिश्ते में अपनी भतीजी को दे दिया। अपमानित राहुल थाने पहुंंचा और थाना प्रभारी विनय तिवारी से शिकायत किया। थाना प्रभारी विनय तिवारी राहुल को अपनी जीप में लेकर विकास के घर बिकरु पहुंच गया। वहां भी थानेदारी का कोई रौब नहीं चल पाया और राहुल की दुबारा जमकर पीटाई कराई गई। यहां तक कि थाना प्रभारी विनय तिवारी की भी पिटाई की गई और उसे अपमानित कर उसका मोबाईल छीन कर भगा दिया। इसके बाद थाना प्रभारी ने राहुल को पुलिस अधीक्षक के पास भेजा जहां पर उसने आपबीती सुनाई। जिसके बाद पुलिस के आला अधिकारियों ने आसपास के थानों को मिलकर दबिश देने और विकास को गिरफ्तार करने के लिए भेजा था। जिसके बाद यह बड़ा कांड हो गया। इसके बाद विकास दूबे बिकरु से फरार हो गया।

वह पछताएगा और नजीर बनेगा….
यूपी पुलिस के आला अधिकारी ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि वह पछताएगा और नजीर बनेगा। अचानक वह मध्यप्रदेश के उज्जैन महाकाल मंदिर में सुबह सात बजे पुलिस वालों से कहता है कि मै विकास दूबे कानपुर वाला…. और पकड़ा जाता है। दिन में करीब तीन बजे तक उज्जैन पुलिस के पास वह कस्टडी में रहता है। इस दौरान यूपी एसटीएफ शाम को करीब तीन बजे उज्जैन पहुंचती है और चार गाडिय़ों के काफीले से विकास को लेकर शाम सात बजे रवाना होती है। इधर उज्जैन पुलिस प्रेस कांफ्रेंस करती है कि कानपुर के दुर्दांत अपराधी विकास दूबे को हमने गिरफ्तार कर लिया है। मध्य प्रदेश के गृहमंत्री और मुख्यमंत्री भी घोषणा करते हैं कि हमने गिरफ्तार कर लिया है। डीएम और एसपी भी कहते हैं कि हमने गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन सवाल है कि जब आपने गिरफ्तार किया है तो दूसरे राज्य की पुलिस को सौंपने के पहले सीआरपीसी की धारा 80 के तहत अदालत में ट्रांजिट रिमांड क्यों नहीं लिया गया। जिसका चेहरा देश के हर टीवी चैनल पर दिखाया जा रहा है उसे उज्जैन पुलिस कंफर्म नहीं कर पाई और तस्दीक के लिए यूपी एसटीएफ के इंतजार में बैठी रही। तो फिर गिरफ्तारी कहां हुई ? और गिरफ्तारी हुई तो ट्रांजिट रिमांड क्यों नहीं लिया गया।

एनकाउंटर या गाड़ी पलटी ?
बिना ट्रांजिट रिमांड पुलिस को विकास दूबे सौंप दिया जाता है। उसके मध्यप्रदेश पुलिस यूपी की सीमा तक छोडऩे अपनी गाड़ी इनोवा में लेकर आती है। साथ में यूपी एसटीएफ की तीन और गाडिय़ों का काफीला रहता है। शाम सात बजे उज्जैन से एसटीएफ की तीन गाडिय़ां एक सफारी, एक टीयूबी 300 और एक कार, चौथी गाड़ी एमपी पुलिस की इनोवा जिसमें विकास को बैठाया जाता है। रास्ते भर यूपी एसटीएफ पत्रकारों से झगड़ती है और कोशिश करती है कि मीडिया उनका पीछा करना छोड़ दे। यहां तक कई बार गाडिय़ों की चाभियों को भी पुलिस निकाल लेती है। एसटीएफ नहीं चाहती थी कि मीडिया की कोई गाड़ी साथ में चले। एमपी की सीमा पर एमपी पुलिस की गाड़ी से विकास को निकालकर एसटीएफ की टीम की साथ सफेद टाटा सफारी में बैठाकर तेजी से आगे बढ़ती है। एमपी पुलिस वापस चली जाती है।

पुलिस की बचकाना स्टोरी
सफेद टाटा सफारी में सवार विकास दूबे बैठा है जो यूपी एमपी की सीमा पर बकायदा कैमरे में रिकार्ड भी होता है। आगे अब कानपुर आने वाला है, और एक नाके के पास मीडिया की गाडिय़ों को बैरिकेट लगाकर रोक दिया जाता है। जहां पुलिस की दो गाडिय़ों और भी काफीले में शामिल हो जाती है, वहां से दस किलोमीटर आगे सडक़ के पास एक टीयूवी 300 गाड़ी पलट जाती है। पुलिस ने बताया कि गाड़ी पलट गई। गाड़ी पलटते ही विकास दूबे भागने की कोशिश किया और पिस्टल छीनने की कोशिश किया जिसमें उसके सीने में तीन गोलियां लगी और एक गोली हाथ में लगी जिसके बाद उसे अस्पताल ले जाता गया और उसकी मौत हो गई।

सवाल है
पुलिस ने घोषण किया कि गिरफ्तार किया है फिर दूसरे राज्य की पुलिस को देने से पहले कानूनी प्रक्रिया का पालन क्यों नहीं हुआ
जब विकास दूबे टाटा सफारी में बैठा था तो दस मिनट में ही टीयूवी 300 कैसे पलट गई और विकास दूबे भागने लगा ?
गाड़ी पलटने के बाद पचास से सौ मीटर घसीटकर गई जिसके निशान जमीन पर क्यों नहीं थे
गाड़ी बिलकुल सही सलामत थी उसमें कोई खरोंच या शीशे आदि क्यों नहीं टूटे
बाकी आप समझदार है उत्तरप्रदेश के एडीजी कानून व्यवस्था ने सच कहा था कि ‘‘आठ पुलिस वालों की शहादत बेकार नहीं जाएगी, जिसने भी यह किया है वह पछताएगा और एक नजीर होगा।’’ जिसके लिए पुलिस ने बच्चों वाली स्टोरी प्लान किया।

You may also like