मुखबिर से बन गया गैंगस्टर….
हत्या की हर एक वारदात में पांच गोली मारकर अपनी क्राईम स्टॉईल बनाने वाले पश्चिम यूपी के कुख्यात माफिया राहुल खट्टा, जो मंदिरों में प्रसाद और जूते-चप्पल चुराते-चुराते करोड़ों की रंगदारी मांगने वाला डॉन बन गया। आईए इस दुर्दांत के अंजाम की स्टोरी जानते हैं मार्कण्डेय पांडे से….
खट्टा प्रहलादपुर के प्रधान को पांच गोली मारकर क्राइम स्टाइल बनाया
उत्तरप्रदेश का पश्चिमी हिस्सा राजधानी दिल्ली से सटा हुआ बागपत जहां के गांव खट्टा प्रदहलादपुर का राहुल खट्टा दिल्ली, हरियाणा, यूपी पुलिस के लिए सिरदर्द बन गया था। शुरुआत उसने मंदिरों में जूते-चप्पलों की चोरी, साईकिल चोरी जैसे छोटे-मोटे अपराध किया। इस काम में उसे मजा आने लगा तो एक कदम आगे बढक़र मोटर साईकिल की चोरी कर डाली और पहुंच गया सलाखों के पीछे। जेल में रहने और कोर्ट-कचहरी में पेशी पर आने के दौरान वह पुलिस का दोस्त बन गया और जेल से बाहर आकर पुलिस के लिए मुखबिरी शुुरु कर दिया। पुलिस के लिए इंफार्मर का काम करते वह छोटे से लेकर बड़े पुलिस अधिकारियों से मिलता रहा और पुलिस के लगभग हर एक दांव पेंच में महारत हासिल करता गया। उसके अंदर डॉन बनने की इच्छा ने जोर मारना शुरु किया और उसने छोटे-मोटे अपराधियों को मिलाकर अपना गैंग तैयार किया। सबसे पहले अपने ही गांव खट्टा प्रहलादपुर के प्रधान को पांच गोलियां मारी जिनकी मौके पर ही मौत हो गई। इसके बाद चर्चा चल पड़ी की खट्टा ने पांच गोलिया मारी और राहुल खट्टा को लगा पांच गोलियां मेरी क्राइम स्टाइल बन गई है और आगे भी उसने जितनी हत्याएं की सबको पांच-पांच गोलियां मारना शुरु किया।
गांव के नाम से जोड़ा अपना नाम
पश्चिम यूपी और हरियाणा में गत दो दशकों से एक प्रचलन चल पड़ा है जहां लोग अपने नाम के साथ गांव या इलाके का नाम जोडऩे लगे हैं। राहुल खट्टा भी खटटा प्रहलादपुर का निवासी था, यह गांव भी दिल्ली से सटे यूपी के बागपत जिले का सीमांत गांव हैं। खट्टा अपने दो भाईयों में छोटा था और पिता खेती-किसानी किया करते थे। सबसे पहले उसने लोनी गाजियाबाद की पुलिस के लिए मुखबिरी शुरु किया था। पुलिस के सारे दांव-पेंच सीखकर उसने जुर्म का अपना अलग ही कारोबार शुरु कर दिया। उसके शिकार व्यापारी, ईंट भट्टे के मालिक, ठेकेदार हुआ करते थे। जिनसे लूट, फिरौती और रंगदारी लेना राहुल खट्टा का रोजगार बन गया था। गांव के स्कूल और मंदिरों से साईकिल चुराने वाला खट्टा अब तीन से पांच करोड़ की रंगदारी से नीचे हाथ नहीं डालता था। कई रंगदारी उसने वसूल की और दिल्ली, हरियाणा और यूपी पुलिस को भनक तक नहीं लगी।
राहुल नाम को गैंग में देता था प्राथमिकता
राहुल खट्टा के बारे में पश्चिम यूपी मेंं वरिष्ठ पुलिस अधिकारी बताते हैं कि ‘‘उसे अपने नाम से बहुत प्यार था,यही कारण है कि उसने अपने गैंग में राहुल नाम के लडक़ों को भर्ती करना शुरु किया। हांलाकि बाद में गैंग बड़ा हो गया और इस नाम के लडक़े नहीं मिलते तो दूसरे लडक़ों को भी भर्ती किया।’’ उसे रुपयों से खास लगाव था, इसके लिए वह किसी हद तक जा सकता था। धीरे-धीरे राहुल खट्टा जुर्म की दुनियां का बड़ा नाम हो गया।
क्राइम के तीन स्टाइल
उसने अपने दुश्मनों के सफाए में जहां पांच गोलियां सीने में उतारना शुरु किया तो उसे अंधविश्वास हो चला था कि नीली गाडिय़ों में वह क्राइम को कामयाबी से अंजाम देता है। इसलिए ज्यादातर वारदात में वह नीली गाडिय़ों का इस्तेमाल करता। इसके अलावा उसने अपने गैंग में राहुल नाम के लडक़ों को भर्ती करने से लेकर उनको खास प्राथमिकता देना भी शुुरु किया।
मुज्ज्फरनगर दंगों के बाद गैंग का बंटवारा भी मजहब के आधार पर
पश्चिम यूपी का ही दूसरा गैंग था मुकीम काला का जो मुस्लिम था। इस गैंग के साथ राहुल खट्टा गैंग की दोस्ती एक जमाने में हुआ करती थी। या यह भी कह सकते हैं कि जुर्म का ककहरा खट्टा ने मुकीम काला गैंग से ही सीखा था। लेकिन मुज्जफरनगर दंगों के बाद जब लगभग पूरा पश्चिम यूपी हिंदू मुस्लिम दंगों की चपेट में आ गया तो गैंगों में भी हिंदू मुस्लिम की खाई चौड़ी हो गई। धीरे-धीरे दोनों गैंग में कट्टर दुश्मनी सामने आने लगी। खैर, राहुल खट्टा पश्चिम यूपी के लिए जुर्म का बड़ा नाम बन चुका था और यूपी पुलिस ने उसके ऊपर इनाम की रकम बढ़ाकर ढाई लाख कर चुकी थी। पुलिस का शिकंजा कसने लगा था लेकिन उस तक पहुंचना मुश्किल था।
पुलिस वाले करते थे मुखबिरी
तीन राज्यों की पुलिस को चुनौती देने वाले राहुल खट्टा पर पुलिस ने शिकंजा कसना शुरु किया तो उसने भी पुलिस पर हमले शुरु कर दिए। उसने बागपत की बजाए मुज्जफरनगर के सरधना के पास अपना ठीकाना बनाया लेकिन बाद में वह सहारनपुर में डेरा जमा लिया। पुलिस ने कई बार दबिश दिया लेकिन वह पुलिस के हाथ से निकल जाता। वजह थी कि उसने पुलिस वालों को ही अपना मुखबिर बना लिया था। एक वक्त जो काम वह पुलिस वालों के लिए करता था वही काम अब पुलिस वाले उसके लिए करने लगे थे और दबिश के चंद मिनटों पहले वह जगह छोड़ देता। पुलिस हाथ मलती रह जाती।
यूपी पुलिस ने खोला नकली बैंक
राहुल खट्टा को पकड़ पाने में हर बार नाकाम पुलिस ने अब अलग तरीके से अपनी योजनाएं बनानी शुरु की और तय किया कि जिन मुखबिरों से उसको सूचनाएं मिलती है उन्हीं का इस्तेमाल किया जाए। पुलिस ने एक मीटिंग बुलाई जिसमें सभी पुलिस वाले मौजूद थे और वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि फंला जगह बैंक मेंं काफी पैसे जमा होते हैं और ठेकदार, व्यापारी लाखों रुपए जमा करते हैं। उस बैंक की निगरानी करनी होगी, कहीं वहां पर राहुल खट्टा कोई वारदात न कर दे। इसके बाद पुलिस वालों ने जाल बिछाया और नकली बैंक खोलकर सादी वर्दी में बैठने लगे। बाकायदा कम्प्यूटर आदि लग गए बैंक और सीए का बोर्ड लगा लेकिन महीने दो महीने बाद यह योजना फ्लॉप साबित हुई।
बारात में नहीं हो पाई गिरफ्तारी
कुछ दिनों बाद पुलिस को पता चला कि राहुल खट्टा एक शादी में आने वाला है। इस जानकारी के कुछ दिनों पहले ही उसने एक पुलिस वाले की हत्या कर दी थी। इस हत्या में उसने आधुनिक हथियारों का इस्तेमाल किया था और पुलिस को यह जानकारी मिल गई थी कि उसके पास आधुनिक हथियार हैं। बारात में राहुल आया भी, पुलिस भी आई। लेकिन दोनों तरफ से फायरिंग नहीं हुई और पुलिस हाथ मलती वापस चली गई। कारण था कि अगर बारात में फायरिंग होती तो कई निर्दोष लोग मारे जाते। आखिरकार पुलिस को कामयाबी तब मिली जब खट्टा गैंग के एक आदमी को अपना मुखबिर बना लिया। अब वह राहुल गैंग के एक-एक हरकत की जानकारी पुलिस को देना शुरु कर दिया था।
पांच जून 2015
इसी बीच राहुल खट्टा ने सहारनपुर के एक व्यापारी से एक करोड़ की रंगदारी मांगी। पांच जून 2015 को वह व्यापारी से मिलने और उसे धमकी देने पहुंचा इधर मुखबिर ने उसकी लोकेशन पुलिस को दे दी। इसके बाद पुलिस की गाडिय़ा उसका पीछा करने लगी। थोड़ी ही देर में राहुल को अंदाजा हो गया कि उसके पीछे पुलिस लग चुकी है जिसके बाद वह बेतहासा सौ से अधिक की स्पीड में गाडिय़ों को भगना शुरु किया। पुलिस की गाडिय़ा भी उसी स्पीड से उसका पीछा करने लगी। तेज सायरन बजाती हवा से बात करती गाडिय़ां और जिले भर के वायरलेस सेट पर एक ही नाम राहुल खट्टा को घेरो। पुलिस ने चारों तरफ से घेरेबंदी शुरु कर दी। अब राहुल ने भी अपनी गाडिय़ों का रुख मुख्य सडक़ से हटाकर गांव के कच्चे रास्तों पर कर लिया। लेकिन सामने से भी पुलिस की घेरेबंदी देखकर वह गाड़ी से उतरकर खेतों की तरफ भागता है और फायरिंग शुरु हो जाती है। पुलिस और राहुल खट्टा गैंग की तरफ से करीब बीस मिनट तक गोलियां चलती हैं और अचानक गोलियों की आवाज राहुल खट्टा की तरफ से आनी बंद हो जाती हैं। लगभग पंद्रह से बीस मिनट के इंतजार के बाद पुलिस सावधानी से आगे खेत की तरफ बढ़ती है जहां राहुल खट्टा खून से लहूलूहान मौत की नींद सो चुका था।