तावडू, तावडू शहर में बने पुराने मकबरे अपनी प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेल रहे है। शहर व क्षेत्रवासियों की बार बार मांग पर लगभग 16 वर्ष पहले पुरातत्व विभाग की ओर से इन मकबरों का मरम्मत का कार्य शुरू तो किया गया लेकिन बीच में ही कार्य को अधूरा छोड प्रशासन व पुरातत्व विभाग ने इतिश्री कर ली। जिसके चलते यह कार्य अभी भी अधूरा है। शासन व प्रशासन की अनदेखी को लेकर क्षेत्रवासियों में रोष है। उल्लेखनीय है कि सन 1269 ई0 से पूर्व गुलाम खानदान के आखरी बादशाह बलवन ने शहर के सरकारी अस्पताल के समीप आलीशान मकबरों का निर्माण कराया था। जिन्हें उस दौर में दूर दराज के लोग इन मकबरों को देखने के लिए आते थे। लेकिन सरकार की अनदेखी की चलते इनकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया है। जिसकी वजह से मकबरे धीरे धीरे खण्डरों में तबदील होते चले गए। हालांकि पुरातत्व विभाग ने इन मकबरों को पर्यटक स्थलों में बदलने की नियत से यहां इनके खोए रूप को दोबारा लाने के लिए वर्षों पहले कई महत्तवपूर्ण कदम उठाए थे। जिस पर कुछ समय अमल भी हुआ और मकबरों की मरम्मत भी कराई गई, लेकिन काफी समय से मकबरों को सुधारने का कार्य पूर्णत: बंद पड़ा हुआ है और इन मकबरों की हालत बद-बदतर हो रही है। पुरातत्व विभाग ने इन मकबरों को विकसित करते समय नगरवासियों को सपना दिखाया कि इस स्थान को पर्यटक स्थल बन जाने के बाद तावडू में चार-चांद लग जाएंगे और विदेशी लोगों का आवागमन कस्बे में शुरू हो जाएगा। जिससे बाजार में रौनक तो बढ़ेगी ही साथ ही तावडू का नाम दूर दराज तक रोशन हो जाएगा। जो आज सिर्फ एक सपना ही बनकर रह गया है। पुरातत्व विभाग मकबरों को सुधारने के प्रति संवेदनशील नहीं है। जिस कारण क्षेत्रवासियों में रोष है। देखना यह है कि कब और कौन इनकी सुध लेकर इन्हें विकसित करा पाएगा।