कबूतरों का इतिहास प्राचीन समय से जुड़ा हुआ है. हजारों साल पहले, लोग संदेशों और सूचनाओं को भेजने के लिए इन अद्भुत पक्षियों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब पड़ोसी देश पाकिस्तान इन कबूतरों का इस्तेमाल सीमा पर भारत की जासूसी के लिए कर रहा है.
P Markandey
कबूतरों का इतिहास प्राचीन समय से जुड़ा हुआ है. हजारों साल पहले, लोग संदेशों और सूचनाओं को भेजने के लिए इन अद्भुत पक्षियों का इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब पड़ोसी देश पाकिस्तान इन कबूतरों का इस्तेमाल सीमा पर भारत की जासूसी के लिए कर रहा है.
कई बार ये कबूतर दूर तक उड़कर चले आते हैं. जिन्हें ट्रेस करना काफी मुश्किल होता है. इसलिए हम आपके लिए जानकारी लेकर आए है कि कबूरों के पैर में कैसे कैमरा इंस्टॉल किया जाता है और आप आसमान में उड़ते हुए कबूतर को कैसे पहचान सकते हैं कि इसके ऊपर जासूसी डिवाइस इस्टॉल की गई है या नहीं. कबूतर के पैरों में कैमरा इस्टॉल करके जासूसी का चलन द्वितीय विश्वयुद्ध में शुरू हुआ था, तब अमेरिका की खुफिया एजेंसी सीआईए ने एक ऐसा कैमरा डेवलप किया था, जिसे बैटरी के साथ कबूतर के पैरों में बांधा जा सकता था और कबूतर जब उड़ता था तो उस दौरान इससे फोटो खीची जा सकती थी.
जासूसी करने वाले कबूतर काफी ऊंचाई पर उड़ते हैं, इन्हें पहचाना काफी मुश्किल होता है. साथ ही जासूसी करने वाले कबूतरों को ट्रेंड भी किया जाता है. ऐसे में इन्हें दाना डालकर आप इन्हें पकड़ नहीं सकते. ऐसे कबूतर को पकड़ने के लिए भी ट्रेड लोगों की जरूरत पड़ती है. कबूतरों में अद्भुत याददाश्त होती है, जिसके कारण वे जटिल मार्गों को याद रख सकते हैं और बार-बार उसी स्थान पर लौट सकते हैं. साथ ही कबूतर अपने घर और अपने मालिक के प्रति बहुत वफादार होते हैं, जिसके कारण वे संदेशों को सुरक्षित रूप से पहुंचाने में सक्षम होते हैं.