पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को मरणोपरांत दिए जा रहे इस सम्मान का कुछ राम जन्मभूमि से भी जुड़ाव है क्या? राव ‘राम जन्मभूमि – बाबरी मस्जिद विवाद’ पर क्या सोचते थे.
कर्पूरी ठाकुर, फिर लालकृष्ण आडवाणी और अब एक साथ तीन भारत रत्न का एलान कर अगर यूं कहें कि भारतीय जनता पार्टी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने राजनीति के धुरंधरों को भी चौंकाया है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, कृषि वैज्ञानिक एम. एस, स्वामीनाथन के अलावा जिस एक नाम को भारत सरकार ने मरणोपरांत भारत रत्न देने का फैसला किया है, वो हैं दिवंगत कांग्रेसी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव.
6 दिसंबर, 1992, दोपहर करीब 1 बजकर 40 मिनट पर बाबरी मस्जिद का पहला गुंबद गिराया गया. तब पामुलापति वेंकट नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे. दोपहर दो बजे के आस-पास नरसिम्हा राव का फोन घनघनाता है. यह फोन कांग्रेस नेता और कैबिनेट मंत्री माखनलाल फोतेदार का था. वह चेतक हेलिकॉप्टर से कारसेवकों पर आंसू गैस छोड़ने की सिफारिश कर रहे थे. बाबरी विध्वंस को रोकना चाहते थे. नरसिम्हा राव पूजा पर बैठे थे. राव ने फोतेदार की परेशानी का कोई हल नहीं दिया. बात राष्ट्रपति तक पहुंची. कैबिनेट की मीटिंग बुलाई गई. बहुत हंंगामा हुआ, आंसू बहाए गए लेकिन नरसिम्हा राव बुत बनकर बैठे रहे. यह सारी कहानी खुद फोतेदार ने बताई.राव भले मंदिर और मस्जिद दोनों के पक्ष में थे लेकिन उनके मन के किसी न किसी कोने में राम मंदिर को लेकर झुकाव था.
नरसिम्हा राव को बाबरी विध्वंस का का पूर्वानुमान था, राव चाहते तो कारसेवकों को रोका जा सकता था, राव विध्वंस के वक्त पूजा कर रहे थे. फोतेदार की बातें सच हैं या झूठ, पता नहीं. लेकिन इतना जरूर है कि नरसिम्हा राव बहुत पहले से किसी पूजा में लीन रह रामकाज को आतुर थे. 1991 से ही बाबरी विध्वंस की आवाजें उठ रही थीं. विश्व हिंदू परिषद आक्रोश में थी. नरसिम्हा राव सबकुछ जानते थे. अपनी पार्टी के दबाव में भारतीय जनता पार्टी, वी.एच.पी. और कारसेवकों को रोकने के लिए राव ने कई दरवाजे बंद तो किए, लेकिन कुछ रोशनदान खोल दिए. बड़े-बड़े कांग्रेसी नेताओं ने अयोध्या में कारसेवकों के जमावड़े पर राव को सावधान किया था. लेकिन फोतेदार, शरद पवार जैसे नेताओं से ज्यादा राव को विजयराजे सिंधिया पर भरोसा था. विजयराजे सिंधिया ने राव को भरोसा दिलाया था कि अयोध्या में सिर्फ सांकेतिक कारसेवा होगी. राव मंदिर और मस्जिद दोनों के पक्ष में थे. बात उलझी थी इस नारे पर कि ‘मंदिर वहीं बनाएंगे’. विपरीत विचारधारा के बावजूद नरसिम्हा राव राम के काज में बाधा नहीं बनना चाहते थे.