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लोकसभा चुनाव 2024 का महापर्व जारी है पहले चरण के लिए 102 सीटों पर वोटींग हो चुकी है.. हर राजनीतिक दल अपने-अपने मुद्दे के साथ जनता के बीच जा रही है, एनडीए के खिलाफ इंडिया गठबंधन अपनी दावेदारी पेश कर रहा है.. जनता की बीच मोदी सरकार की तमाम नितियों की कमियां गिना रहे है, वहीं भाजपा और उसके सहयोगी दल ‘अबकी बार 400 पार के नारे’ के साथ चुनावी मैदान में उतरे हैं…
लगातार तीसरी बार जबरदस्त बहुमत से सत्ता में लौटने की बीजेपी की कोशिश कुछ मुद्दों पर टिकी नजर आती है, इनमें सबसे बड़ा मुद्दा राम मंदिर का है. राम मंदिर का मुद्दा भाजपा के एजेंडे में सालों से शामिल रहा है.. अब राम मंदिर बन चुका है और पार्टी इस मुद्दे को भुनाने में भी जुटी है.. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल 22 जनवरी को रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की थी. वहीं, कई विपक्षी दलों ने इस समारोह से दूरी बनाई थी. ऐसे में सवाल पूछा जा रहा है… भाजपा और एनडीए के लिए राम मंदिर और हिंदुत्व का मुद्दा कितना कारगर होगा? या फिर विपक्षी गठबंधन एनडीए को इस मुद्दे को भूनाने से रोक पाएगी…
आइये संक्षेप मे जानते है राम मंदिर का मुद्दा, मामला 1526 से शुरू होता है… ये वो साल था जब मुगल शासक बाबर भारत आया.. दो साल बाद बाबर के सूबेदार मीरबाकी ने अयोध्या में एक मस्जिद बनवाई.. यह मस्जिद उसी जगह बनी जहां भगवान राम का जन्म हुआ था… बाबर के सम्मान में मीर बाकी ने इस मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद दिया… ये वो दौर था जब मुगल शासन पूरे देश में फैल रहा था.
. मुगलों और नवाबों के शासन के दौरान इस मामले में हिंदू बहुत मुखर नहीं हो पाए, 19वीं सदी में अंग्रेज हुकूमत प्रभावी हो चुकी थी.. इस दौर में ही हिंदुओं ने यह मामला उठाया और कहा कि भगवान राम के जन्मस्थान वाली मंदिर को तोड़कर मस्जिद बना ली गई..
इसके बाद से रामलला के जन्मस्थल को वापस पाने की लड़ाई शुरू हुई… 1858 में लड़ाई कानूनी हो गई, जब पहली बार परिसर में हवन, पूजन करने पर एक एफआईआर हुई…
1885 में राम जन्मभूमि के लिए लड़ाई अदालत पहुंची.. जब निर्मोही अखाड़े के मंहत रघुबर दास ने फैजाबाद के न्यायालय में स्वामित्व को लेकर दीवानी मुकदमा दायर किया, दास ने बाबरी ढांचे के बाहरी आंगन में स्थित राम चबूतरे पर बने अस्थायी मंदिर को पक्का बनाने और छत डालने की मांग की.. फिर देश की आजादी का लड़ाई और राम मंदिर मुद्दा चलता रहा देश आजाद हो गया लेकिन मंदिर की लड़ाई जारी रही…
हिंदू संत महंतो ने राम मंदिर की लड़ाई जारी रखी आजादी के साथ मंदिर आंदोलन और जोर पकड़ लिया… इस दौरान ज्यादातर रीजनीति दल अपने आप को मंदिर के मुद्दों से दूर रखा कोई खुल कर मंदिर के लिए स्टैड नही लेते और मामला लंबित होता चला गया… वही बीजेपी अपनी शुरुआती देनों से ही राम मंदिर को अपने चुनावी एजेंडो में रखा… समय मसय पर बीजेपी के नेता इसके लिए आंदोलन भी करते रहे… 1990 में लालकृष्ण आडवाणी द्वारा देश भर में रथ यात्रा निकाला गया जिसे बिहार में तत्कालीन मुख्य मंत्री लालू यादव द्वारा रोक दिया गया..
लेकिन लड़ाई जारी रही तमाम दल बीजेपी पर धर्म की राजनीति का आरोप लगाते रहे लेकिन बीजेपी हमेशा राम मंदिर और कश्मीर के मुद्दा को मुखर होकर उठाती रही… अंतत मोदी सरकार के दौरान आदालती फैसला आया और भव्य राम मंदिर बनकर तैयार हो गया और लगभग 500 साल से चलता आ रहा आंदोल अपने मुकाम पर पहुंच गया….. ऐसे में बीजेपी इस मुद्दे को जरूर अपने कामयावी के रूप में देखती है वही विपक्षी दल बचाव करती हुई नजर आती है…
पहले बीजेपी के नेताओं से सवला पूछा जाता था की मंदिर कब बनाएंगे और तंज कसा जाता था ‘मंदिर वही बनाएंगे लेकिन तारीख नहीं बताएंगे’.. अब मंदिर बन गया है तो बाजेपी उसे भुनाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहीं वहीं विपक्षी दल सही से बचाव नही कर पा रही है और राम मंदिर के मुद्दे पर बैफूट पर नजर आ रही है…