अंग्रेजी का एम्बुश शब्द ऐसे तो सामान्य अर्थो में घात लगाने से लिया जाता है लेकिन पुलिस के शब्दकोष में इसका अर्थ बड़ा व्यापक है। अपराधियों पर शिकंजा कसने में एम्बुश में पुलिस को अपने नर्व से लेकर सांसों तक पर कंट्रोल करना पड़ता है।
यहां तक कि अगर मुठभेड़ जंगली इलाकों में होना है तो अपने पसीने की गंध से लेकर खानपान तक पर सावधानी बरतनी पड़ती है। मुंह से, सांसों से या पसीने की गंध भी जानलेवा साबित हो सकती है। ऐसी स्थिति में सुरक्षाकर्मी अपने शरीर पर वहीं का कीचड़ और मिट्टी लपेटकर घात लगाते हैं। शरीर के किसी अंग में बिना कोई हरकत किए घंटों तक अपराधियों की घात में बैठने के लिए बेहद कठिन प्रशिक्षण के दौर से गुजरना होता है। ऐसे ही कठिन हालातों से गुजरकर जंगली मुठभेड़ में ठोकिया को ठोकने वाले यूपी कैडर के आईपीएस अमिताभ यश इन दिनों उत्तरप्रदेश में उमेश पाल मर्डर के बाद उनके हत्यारों को मिट्टी में मिलाने का मुश्किल टास्क के बाद एकबार फिर से चर्चा में आ गए हैं। आईए जानते हैं अमिताभ यश के बारे में कुछ बेहद शानदार बातें –
150 से अधिक एनकाउंटर कर चुक हैं
अमिताभ यश साल 1996 बैच के आईपीएस हैं जिनको एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहा जाता है। अब तक 150 से अधिक एनकाउंटर कर चुके अमिताभ यश का सबसे मुश्किल टास्क चंबल के डकैत और उत्तरप्रदेश सहित मध्यप्रदेश के लिए आतंक बने रहे ठोकिया का खात्मा था। यह मुठभेड़ जंगल में हुई थी जहां पर यश की अगुवाई में पुलिस ने घंटों तक एम्बुश किया था। यूपी में बाहुबली मुख्तार और अतीक गैंग के अनेक शूटर को मौत की नींद सुलाया है, कानपुर के बिकरु गांव के कुख्यात अपराधी विकास दूबे के टास्क को भी अमिताभ यश ने ही लीड किया था।
चित्रकूट के जंगलों में छाई शांति
मायावती सरकार के दौरान अमिताभ यश को एसटीएफ एसएसपी की जिम्मेदारी डकैत ददुआ को खत्म करने के खास उददेश्य से दी गई थी जिसमें वह शत-प्रतिशत कामयाब रहे थे। साल 2007 में बुंदेलखंड के जंगलों में एसटीएफ की टीम और चित्रकूट पुलिस ने ददुआ के खिलाफ अभियान ही छेड़ दिया था। करीब 24 घंटे से अधिक वक्त तक चले एनकाउंटर में आखिकार ददुआ को मार गिराया गया था।
सिरहाने रखकर हथियार सोते थे
ददुआ के आपरेशन के दौरान ही चित्रकूट में आईपीएस युगुल किशोर तैनात थे। वह बताते हैं कि हफ्तों तक जिले के पुलिसकर्मी कई रातों ठीक से सो नहीं पाए और वरिष्ठ अधिकारी भी रातभर चौकन्ना रहते थे। कारण कि ददुआ और ठोकिया इन दोनों के समर्थन में कई समीकरण थे, वह सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र पर तो कब्जा किए ही हुए थे, सियासत से भी जुड़े थे। चुनाव लडऩे वाले अथवा विकास कार्य को कराने वाले ठेकेदार बिना इनकी अनुमति कुछ भी नहीं कर सकते थे। आईपीएस जुगुल किशोर इन दिनों लखनऊ में बतौर आईजी अपनी सेवाएं दे रहे हैं।
पहली बार हुआ जीपीएस का इस्तेमाल
ददुआ और ठोकिया का आपरेशन उनके कैरियर के मुश्किल टास्क रहे हैं जिनको उन्होंने सफलता पूर्वक अंजाम दिया है। ददुआ के आपरेशन में पहली बार जंगलों में लोकेेशन को ट्रेस करने लिए यूएसए से जीपीएस टै्रकर मंगवाया गया और उत्तरप्रदेश पुलिस ने सर्वप्रथम उसका प्रयोग 2007 में किया था। बुंदेलखंड के जंगलों में आपरेशन सबसे मुश्किल काम होता था, कारण कि डकैतों को उन रास्तों और पुलिस की नजरों से बचने, पुलिस पर हमला करने से लेकर प्राकृतिक वातावरण की पूरी जानकारी होती है, जबकि पुलिस उन सभी बातों से अंजान होती है। कई बार जंगलों में घात लगाकर बैठै पुलिस अधिकारियों को अनुमान से अधिक वक्त तक जंगलों में भूखे प्यासे भटकना पड़ता है।
थाने में ही पढऩा लिखना सीखा
अमिताभ यश मूल रुप से बिहार के भोजपुर जिले के रहने वाले हैं जिन्होंने शुरुआती पढ़ाई पटना से पूरा किया। उनके पिता श्रीराम यश भी पुलिस अधिकारी रहे हैं और पिता के संरक्षण में ही उन्होंने अक्षर ज्ञान किया। प्रतिभा के बेहद धनी, पुस्तक प्रेमी अमिताभ ने आईआईटी के चयन को छोडक़र आईपीएस होना स्वीकार किया। हांलाकि उन दिनों देश में आईआईटी की संख्या महज पांच या छह हुआ करती भी और इसमें चयन बेहद कठिन माना जाता था।